Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
नैरयिक आठ प्रकृतियों का बंधक"
यह दूसरा भंग होता है। जब आठ प्रकृतियों को बांधने वाले बहुत जीव होते हैं तब दोनों स्थानों पर बहुवचन रूप 'अनेक नैरयिक सात प्रकृतियों को बांधने वाले और अनेक आठ प्रकृतियों को बांधने वाले' - यह तीसरा भंग होता है।
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एवं असुरकुमार वि जाव थणियकुमारा ।
भावार्थ - इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमार तक के प्राणातिपात के अध्यवसाय से होने वाले कर्म-प्रकृतिबन्ध के तीन-तीन भंग समझने चाहिए।
विवेचन नैरयिकों की तरह असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के भवनपति देवों के विषय में भी इस प्रकार तीन-तीन भंग समझने चाहिये - १. अनेक देव सात प्रकृतियों के बंधक २. अनेक देव सात प्रकृतियों के बंधक और एक देव आठ प्रकृतियों का बंधक ३. अनेक देव सात प्रकृतियों के बंधक और अनेक देव आठ प्रकृतियों के बंधक।
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पुढवि आउ तेउ वाउ वणस्सइ काइया य एए सव्वे वि जहा ओहिया जीवा । भावार्थ- पृथ्वी - अप्-तेजो- वायु-वनस्पति कायिक जीवों के प्राणातिपात से होने वाले कर्मप्रकृतिबन्ध के विषय में औधिक (सामान्य) अनेक जीवों के कर्मप्रकृतिबन्ध के समान कहना चाहिए।
अवसेसा जहा णेरड्या |
भावार्थ - अवशिष्ट समस्त जीवों (वैमानिकों तक) के, प्राणातिपात से होने वाले कर्मप्रकृतिबन्ध के विषय में नैरयिकों के समान कहना चाहिए ।
एवं ते जीवेगिंदियवज्जा तिण्णि तिणिण भंगा सव्वत्थ भाणियव्वत्ति जाव मिच्छादंसणसल्ले |
भावार्थ - इस प्रकार समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष दण्डकों के जीवों के प्रत्येक के तीन-तीन भंग सर्वत्र कहने चाहिए तथा मृषावाद से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक के अध्यवसायों से होने वाले कर्मबन्ध का भी कथन करना चाहिए।
एवं एगत्तपोहत्तिया छत्तीसं दंडगा होंति । ५८५ ॥
भावार्थ - इस प्रकार एकत्व (एक वचन) और पृथक्त्व (बहुवचन) को लेकर छत्तीस दण्डक होते हैं।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में प्राणातिपात आदि क्रियाओं से होने वाले कर्म प्रकृतिबंध का निरूपण किया गया है। जिस प्रकार सामान्य जीवों के विषय में कहा उसी प्रकार पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय के विषय में कहना यानी दोनों स्थानों पर बहुवचन की अपेक्षा एक ही भंग कहना क्योंकि हिंसा के परिणाम वाले पृथ्वीकायिक आदि जीव सात प्रकृतियों का बंध करने वाले या आठ प्रकृतियों
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