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पंचविहायार-पालण-समत्थो- । पंच-समिओ-पाँच समितियोंसे
पाँच तरहके आचारोंको पालन युक्त। करनेमें समर्थ ।
ति-गुत्तो-तीन गुप्तियोंसे युक्त । पंचविह-पाँच तरहके । आयार
छत्तीसगुणो-छत्तीसगुणोंवाले। आचार, मर्यादा-पूर्वक वर्तन करनेकी क्रिया। पालण- गुरू-गुरु । समत्थ-पालन करने में समर्थ ।। मज्झ-मेरे ।
अर्थ-सङ्कलना
पाँच इन्द्रियोंको वशमें रखनेवाले, नवविध-ब्रह्मचर्यकी गुप्तिको धारण करनेवाले, क्रोधादि चार प्रकारको कषायोंसे मुक्त, इस प्रकार अठारह गुणोंसे युक्त तथा पाँच महाव्रतोंसे युक्त, पाँच प्रकारके आचारोंके पालन करनेमें समर्थ, पांच समिति और तीन गुप्तियोंसे युक्त,
इस प्रकार छत्तीस गुणोंसे युक्त मेरे गुरु हैं । सूत्र-परिचय
समस्त धार्मिक क्रियाएँ गुरुकी आज्ञा ग्रहणकर उनके समक्ष करनी चाहिये, परन्तु जब ऐसा सम्भव ( योग ) न हो और धार्मिक क्रिया करनी हो, तब ज्ञान, दर्शन और चारित्रके उपकरणोंमें गुरुकी स्थापना करके काम चलाया जाता है। ऐसी स्थापना करते समय इस सूत्रका उपयोग होता है।
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