Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 18
________________ (जीवो की विचारणा ० जीव के दो प्रकार - संसारी और सिध्द ० सिध्द • सब निरंजन निराकार होने से एक रुप ही है । संसारी अवस्था की अपेक्षा उसके पंद्रह भेद नवतत्व में बताये गये हैं । ० संसारी के दो भेद - त्रस और स्थावर ० त्रसजीव - भय से कांपते है हलन चलन करते है उसके चार भेद है, बेइन्द्रियादि। ० स्थावर • अपनी इच्छा के अनुसार हलन - चलन न कर सकें इसे स्थावर कहते है स्थावर के पांच भेद है । (1) पृथ्वीकाय (2) अप्काय (3) तेउकाय (4) वायुकाय (5) वनस्पतिकाय (1) पृथ्वीकाय • खान में पत्थर, सोना, आदि बढते दिखते है, वही उसके सचेतन की निशानी है । खोदने पर मिट्टीमेंसे गर्म बाफ-भाप निकलती है। (2) अप्काय - अन्डे के रसमेंसे जीव बनता है, इसलिए उस रस को सचेतन माना जाता है । उसी प्रकार कुएमें अपने आप पानी बढता है और गर्मी में ठण्डा रहता है, और ठण्डी में - सर्दी के मौसम में गरम होता जिस प्रकार हमारा शरीर, यह परिवर्तन तैजस शरीर बिना नाममुंकिन है इसलिए पनी खुद सचेतन है । उसमें दिखने वाले जीव भिन्न है । (3) तेउकाय • आग इंधन के भोगसे बढती है जैसे हमारा शरीर, वह उसके सजीव की पहचान है । (4) वायुकाय · वायु - अन्य किसी की प्रेरणा बिना अनियत रुप से गति करता है से हम, इसलिए वह सचेतन है । (5) वनस्पतिकाय · वनस्पति (हरियाळी) के दो प्रकार है साधारण और प्रत्येक । 'जन अनंत जीवो का एक ही शरीर होता है तथा वे जीव एक पदार्थ प्रदीप

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