Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 50
________________ पुद्गलो को उदय में लाकर नाश करता है, इस प्रसंग को वेदना समुद्घात कहते है। 2. कषाय समुद्रघात - कषाय से व्याकुल जीव पूर्ववत दण्डाकार बनकर कषाय मोहनीय का नाश करता है । इस प्रसंग को कषाय समुद्घात कहते है । मगर कषाय की प्रबलता के कारण नये कर्म का अधिक बंध करता है। 3. मरण समुद्घात - मृत्यु के समय व्याकुल आत्मा मृत्यु से अंतर्मुहुर्त पूर्व अपने आत्मप्रदेशो को शरीर से बहार निकालकर जहाँ उत्पन्न होने का है वहां तकअंगुल के असंख्यात भाग और उत्कृष्ट से असंख्यात योजन तक फेलता है - अंतमुहूर्त तक ऐसी अवस्था में रहकर जीव मृत्यु को भेटता है । इस प्रसंग को मरण समुद्घात कहते है । 4. वैक्रिय समुद्घात - वैक्रिय लब्धिवाले आत्मा आत्मप्रदेशो को शरीर बहार निकालकर उत्कृष्ट से संख्यात योजन दीर्घ और स्वदेह प्रमाणमें जाडा दंडाकार बनाकर पूर्वोपार्जित वैक्रिय नाम कर्म के अत्यधिक प्रदेशो को उदीरणा द्वारा उदय में लाकर विनाश करने के साथ, जैसा शरीर बनाने की इच्छा की हो उसके योग्य वैक्रियवर्गणाके पुद्गलो को ग्रहण करके वैक्रिय शरीर बनाता है । 5. तेजस् समुद्घात - तेजो लेश्या लब्धिमंत आत्मा पूर्ववत दण्डाकार बनाकर पूर्वोपार्जित तैजस नामकर्म के प्रदेशो को प्रबल उदीरणा से नाश करनेके साथमें तैजस् पुद्गलो को ग्रहण करके तेजोलेश्या या शीतलेश्या फेंकता है। 6. आहारक समुद्घात - यहां पर आहारक लब्धिमंत वैक्रिय समुद्घात की तरह आहारक शरीर बनाता है । 7. केवलिसमुद्घात - केवली भगवंत नाम गोत्र वेदनीय की स्थिति को समान करने के लिए आत्मप्रदेशो को बहार निकालकर चौद रज्जु लम्बा स्वदेह प्रमाण जाडा दंडाकार प्रथम समये में बनाते है, दूसरे समय उत्तरदक्षिण या पूर्व-पश्चिम कपाट बनाते है । तीसरे समय उत्तर-दक्षिण / पूर्वपश्चिम कपाट बनाते है । चोथे समये बीच का अंतर पूरते है, उस समय 33 प दार्थ प्रदीप

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