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ये सात चैत्यवंदन साधु-साध्वीजी को व पौषधवाले श्रावक श्राविका को प्रतिदिन करने के होते है ।
चोविहार उपवास वाले को पांच चैत्यवंदन होते है, शेष श्रावकश्राविका को 5-4-3-2 भी होते है ।
॥ मंदिर की बड़ी 10 आशातना ॥ 1. पान-सोपारी खाना
6. सो जाना । 2. पानी पीना
7. थुकना 3. भोजन करना
8. पेशाब करना 4. जुत्ते पहनकर जाना 9. संडास जाना 5. मैथुन का सेवन
10. जुआ खेलना ये मंदिर की 10 बडी आशातना कीसी भी प्रकार के प्रयत्न से छोडनी चाहिए । छोटी आशातना 84 है ।
|| गुरू वंदन भाष्य ।।
०वंदन के पांच नाम (1) वंदन कर्म · शुभ मन वचन काया से गुरु को वंदन करना स्तुति करनी आदि । (2) चिति कर्म -रजोहरण, मुहपत्ति, चोलपट्टा आदि उपधि के साथ जो वंदन की क्रिया होती है, उसे चितिकर्म कहते है । (3) कृति कर्म · मोक्ष के लिए गुरू को जो नमस्कार - वंदन करने में आता है, उसे कृतिकर्म कहते है । (4) पूजा कर्म · मन-वचन-काया सें शुभ प्रवृत्ति करनी, उसे पूजा कर्म कहते
(5) विनय कर्म - कर्म को नाश करने वाली गुरू महाराज के अनुकूल जो प्रवृत्ति वो विनय कर्म ।
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प दार्थ प्रदीप