Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 113
________________ CBE अणत्यणाभोगेणं - यदि भूल से पाणी अथवा खाने की चीज मुंह में डाल दी, याद आने के बाद तुरंत थुक दिया, तो उससे पच्चक्खाण भंग नहि होता है। सहसागारेणं - सहसा - अचानक अपने मुंह में कोई चीज आ पडे तो पच्चक्खाण का भंग नहि होता है। पच्छन्नकालेणं - सूरज बादल से ढंक गया हो और पोरसी आदि पच्चक्खाण पारे, मुंह में कुछ डाल दे व पीछे से सूरज दिखे तो भी भंग नहि होता है। दिसा मोहेणं - पूर्व दिशा को पश्चिम मानकर पच्चक्खाण पारे तो भंग नहि। साहूवयणेण - साधु का 'बहुपडिपुन्ना पोरसी " का वचन सुनकर पोरसी का पच्चक्खाण पारे तो भंग नहिं । सब जगह सत्य ज्ञात होने पर खाना पीना बंध कर देना चाहिए अन्यथा पच्चक्खाण का भंग होता है । महत्तरागारेण · कोई खास/विशेष कारण संघ का अथवा शासन के कार्य के लिए पच्चक्खाण समय पूर्व पारे तो भी भंग नहिं । सव्वसमाहि वत्तियागारेणं - तीव्र शूल की वेदना हो अथवा सर्प आदि झेरी जन्तु काटा हो व आर्तध्यान चालू हो तब औषध आदि ले तो भंग नहि। आउंटण पसारेणं - हाथ पैर को लम्बा- करे फेलावे तो भंग नहिं। ((वायु) आदि के कारण से पांव जकड जाते है, इसलिए ये छूट दी है)। गुरु अब्भुट्ठाणेणं • गुरु महाराज आचार्यआदि आवे तो एकासणा आदि करते उठे तो भंग नहिं । पारिट्ठावणियागारेणं - विधिपूर्वक लायी हुई गोचरी वापरने के बाद बढ जाये, तो गीतार्थ की आज्ञा से तिविहार उपवास या छठ तपवाले वापरे तो भंग नहि । (अभी चोविहार उपवास वाले को यह आगार नहि दिया जाता है) पदार्थ प्रदीप 396

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