Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 114
________________ पडुच्चमक्खिएणं - रोटी आदि को कोमल बनाने के लिए गृहस्थ ने घी अथवा तेल का हाथ लोट को लगाया हो एसी अल्प लेपकृत रोटी नीवी के पच्चक्खाणवाले को खपें | काम में ले सकते है । तिविहार के पच्चक्खाण में शुद्ध पाणी न मिले तो दूसरा पाणी काम आता है उनके छ आगार । (1) लेवेण - खजूर आदि का पाणी चीकना होने से लेपकृत है। (2) अलेवेण - कांजी का पाणी, छाश की आश, जव का पाणी चिकाश बिना का होने से अलेपकृत है । (3) अच्छेण · शुद्ध पाणी अथवा फल आदि का अचित्त पाणी। (4) बहलेवेण · चावल या तलादि धोवण का पाणी । (5) ससित्येण · दाणा से युक्त ओसामण का पाणी । (6) असित्येण · दाणा बिना का ओसामण का पाणी । अट्ठम अथवा अट्ठम उपर के तप में शुद्ध पाणी काम आता है, दूसरा नहिं । ॥ दूध के पांच निवियाते ।' (1) बासुंदी (2) खीर (3) दूधपाक (4) अवहेलिका - (चावल के आटा युक्त बनाया हुआ दूध) (5) दुग्धाटी (काजी आदि खाद्य पदार्थ से युक्त बनाया हुआ दूध) ॥ दहीं के पांच निवियाते ॥ 1. करंब • दहीं से युक्त चावलवाला दहीं 2. शीखंड 3. सलवण 4. घोल · वस्त्र से छाना हुआ दही (खांड डालके) 5. घोलवडा. गरम कीये हए दहीं में वडे डालकर बनाया जाता है । (अपनी अंगुली जल जाये एसा दहीं गरम करना) ॥ घी के पांच निवियाते ॥ 1. निभंजन · पक्वान आदि से पका हुआ घी । (97 प दार्थ प्रदीप

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