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कार्य के पांच कारण - 1. काल - किसी भी कार्य की उत्पत्ति में काल की अपेक्षा रहती है । आम का बीज बोने के बाद हवा पानी का संयोग मिलने पर भी समय के पहले फलीभूत नहिं होता । 2. स्वभाव - पदार्थ की तदरूप में परिवर्तित होने की योग्यता | जैसे उस आम बीज में आम के पेड रूप में होने की योग्यता थी, इसलिए आम का पेड बना, लेकिन उसमें से निंबका पेड न बना । 3. भवितव्यता - निश्चित नामधारी द्रव्यादि का ही संयोग मिलना जैसे उस बीज को छगन पटेल के खेत में ही बोया गया और जिससे वह घटादार वृक्ष बना, उसकी छाया में साधु को विश्राम का अवसर मिला। 4. कर्म · अपने अपने कर्म के उदय / क्षयोपशमादि से ही कार्य बनता है, उस बीज के जीव में स्थावर नाम कर्म , वनस्पति उपधायक नामकर्म इत्यादि का उदय होने से ही वृक्ष बनता है। 5. पुरुषार्थ- कार्य के लिये तदनुकूल प्रवृत्ति, उस बीज को बोने के बाद पाणी-प्रकाश आदि प्रदान करना, साथमें उस बीज जीव में अपने आत्म प्रदेश फेलाने की प्रवृति होती रही वह पुरुषार्थ है!
यूका शय्यातर जटाधारी योगी का मीलना गौशाला के मुहमें से यूका शय्यातर शब्द निकलना ये सब भवितव्यता है .केवल ज्ञान के बाद का काल उसके लीये आया उसमें भी आत्मा का ही सहन करनेका स्वभाव है और अशाता वेदनीय कर्म का उदय तो मानना ही होगा! तेजो लेश्या शीखाने का प्रयत्न खुद वीर प्रभुने कीया था! इस प्रकार ५ हेतुका समवधान होनेसे तेजो लेश्या फेंकने का कार्य हआ!
" आत्मा में समकित कार्य की उत्पति में पांच कारण का समवधान" काल-संसार से छुटने का अर्धपुदगल परावर्तन काल शेष रहता है, तभी ही जीव समकित प्राप्त करता है! जैसे-कीसीको बाधा,सोगन लेने को
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पदार्थ प्रदीप