Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 117
________________ 5. किट्टीयं - भोजन करते समय फिर से पच्चक्खाण को याद करना । जैसे - मेरे आज आंबिल का पच्चक्खाण है, मैं अभी पार रहा हूं | 6. आराहियं - उपर बतायी हुई पांच शुद्धि को याद करके लीया हुआ पच्चक्खाण बराबर पारा-आराधा एसा विचार करना । [दूसरी रीत से छ शुद्धि 1. श्रद्धाशुद्धि - शास्त्र में बताये हुए पच्चकखाण पर श्रद्धा रखना। विधि सत्य है, पच्चक्खाण करना चाहिए, मेंने किया वो अच्छा किया है । 2. ज्ञान शुद्धि - पच्चक्खाण का अर्थ, विधि, आगार, प्रकार आदि को जानकर पच्चक्खाण करना । 3. विनय शुद्धि - गुरु महाराज को विधिपूर्वक वंदन करके पच्चक्खाण लेना। 4.अनुभाषण शुद्धि-गुरु पच्चक्खाण दे तब अपने मनमें वो पच्चक्खाण बोलना। जिससे उपयोग रहे कि मैंने यह पच्चक्खाण किया है । 5. अनुपालन शुद्धि - पच्चक्खाण करने के बाद कितनी भी तकलीफ पडे तो भी पच्चक्खाण का भंग करे नहि, ली हुई प्रतिज्ञा प्राणान्ते भी तोडे नहि। 6. भाव शुद्धि - में उपवास, छठ, अठाई, मासखमण आदि करुंगा तो लोक मेरी पूजा करेंगे । मेरी प्रतिष्ठा बढेगी । मेरी तपस्वी की छाप पडेगी। परलोक में देवेन्द्र बनूंगा एसी एहिक या पारलोकिक इच्छा का त्याग करके जन्म मरण का नाश करके मोक्ष में जाने के लिए पच्चक्खाण करना । क्रोध से किया हुआ पच्चक्खाण निष्फल जाता है । पदार्थ प्रदीप H D 1000

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