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थीणद्धि - दिन में चिंतित कर्म पूर्ण न होने से रात को निद्रा वश में उठ कर उस कार्य को करना । जैसे अमेरिका में अक व्यक्ति ने इमारत को कूदा फिर शयन में लेट गया । हकीकत में काम करने पर भी उसे एसा महसूस होताहै कि जाने कोई सपना आया । इस प्रकार दर्शन को रोकने वाले कर्म का दर्शनावरणीयमें समावेश होता
वेदनीय - मन वचन काया के अनुकुल सामग्री प्राप्त करना जैसे जिससे अपने मन को संतोष हो एसे स्वभाव वाले व्यक्ति का मिलन होना । जो वचन आनंद देने वाला हो, सुंदर ढंग से पांव दबाने वाले व्यक्ति का। गर्मी दूर करने वाले A.C. का संयोग होना । इससे विपरीत परिस्थिति खडी करनेवाला आशाता वेदनीय कर्म है । मोहनीय कर्म - मुख्य दो भेद · दर्शन मो. / चारित्र मो. दर्शन मोहनीय - मिथ्यात्व / मिश्र/ समकित मो. तीन भेद है, मिथ्यात्व में जो महामिथ्यात्वी होता है उसे जिन प्रवचन में बिल्कुल श्रद्धा नहिं होती उसे समजाने पर मश्करी / उपहास करता है और संसार सुख में हि लयलीन रहता है, उसे भवाभिनंदी / दुर्भव्य भी कहते है । मंद मिथ्यात्वी - अब तक मिथ्यात्व का उदय है लेकिन उसे दया परोपकार की भावना होती है, संसार में गहरी/बडी रूचि नहिं होती । कृतज्ञ होता है अर्थात् समकित के मार्ग में आया नहीं है, लेकिन व जिस रस्ते पर चल रहा उससे वह समकित प्राप्त कर सकता है । उसे मार्गानुसारी | मार्ग पतित अपुनबंधक भी कहते है। मिश्र - जिन भाषित पदार्थ में राग द्वेष रहित वृत्ति का होना । समकित - जिन भाषित पदार्थ में रूचि होना, मगर एक भी पदार्थ में अरूचि रखे तो वह मिथ्यात्वी है जैसे - जमाली । परंतु जिसे ज्ञानावरण के वश गहन पदार्थ समजमें न आवे तो भी "जो जिनेश्वर ने कहा है वही
पदार्थ प्रदीप 01020