Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 111
________________ (4) अकासणा - दिन में अक बार अकही जगह पर बैठके सचित का त्याग करके भोजन करना उसमें भोजन के बाद केवल गरम पाणी पीया जाता (5) अकलठाणा - भोजन करते समय बांया हाथ व मुंख बिना दूसरा कोई भी अंग हिलाना नहिं चाहिए, दूसरा सभी ओकासण की तरह, इसमें बादमें पाणी नहि पी सकते । . (6) आयंबिल - जिसमें दूध, दही, गुड, खांड, तेल, मिष्टान्न, लीली सब्जी आदि का त्याग होता है । केवल पाणी से तैयार किया हुआ अनाज व कठोल आदि दिन में अक बार ओक जगह बैठकर खा सकते है । पान, लीडीपीपर, सोपारी इत्यादि बिल्कुल बंध । (7) उपवास • चोविहार उपवास में चारे आहार का त्याग व तिविहार उपवास में पाणी की छूट. (जैन धर्म के उपवास में पूरे दिन व पूरी रात तक कुछ भी खाने का नहि होता है । ) उपवास करने से पाप व विकार वासना दूर होती है शारीरिक रोग दूर होता है मानसिक शांति होती है आत्मा को अणहारी स्वभाव का स्वाद मिलता है। (8) दिवस चरिम - शाम को भोजन करने के बाद जो रात में पाणी की छूट रखता है, उसे तिविहार व पाणी का भी त्याग करता है, उसे चोविहार कहते है। (9) अभिग्रह पच्चक्खाण - किसी भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का नियम ग्रहण करना । (10) विगई त्याग • घी, दूध, दही, तेल, कढा विगई -कढाई में तलकर बनाए हुओ पदार्थ व गुड, ये छ प्रकार की विगई है, हमेशा अपनी यथाशक्ति से 1-2-3-4-5-6 विगई का त्याग करना । (विगई को छोड़ने वाला ब्रह्मचर्य का पालन अच्छी तरह आसानी से कर सकता है) पदार्थ प्रदीप 94

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