Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 110
________________ 2. अतीत - उपर लिखे हुए कारणो से पहले करने का तप बाद में करे जैसे संवच्छरी का अट्ठम पजुसण के बाद करे. 3. कोटी सहित - उपवास के पारणे के दिन पुनः उपवास करे | 4. नियंत्रित · किसी भी प्रकार की परिस्थिति में छठ अट्ठम करूगां एसी प्रतिज्ञा करनी । ( ये तप जिनकल्पी अथवा चौदपूर्व धारीओ के समय में प्रथम संघयण वाले को होता है ।) 5. अनागार - जिस पच्चक्खाण में अनाभोग व सहसागार केवल दो आगार खुले हो। 6. सागार - जिस पच्चक्खाण में अनाभोग सहसागार इत्यादि सभी आगार खुल्ले हो । 7. परिमाणकृत - जिसमें दत्ती , कवल, घर, द्रव्य, दाता आदि का परिमाण (प्रमाण) तय करना। 8. निरवशेष - जिसमें चारो आहार का त्याग होता है। (अशन • पान • खादिम · स्वादिम) 9. संकेत - मुट्टिसी गठसी, पाणी का बिंदु, वीटी, दीप की ज्योत इत्यादि की धारणा करके पच्चक्खाण करना । जैसे कपडे पर दी हुई गांठ छोडु नहि, तब तक चार आहार का त्याग, दीप की ज्योत जब तक बुझे नहि, तब तक चार आहार का त्याग । 10. अध्धा - काल पच्चक्खाण, नवकारशी, पोरसी, साढपोरसी आदि का पच्चक्खाण करना । अध्धा पच्चक्खाण के 10 प्रकार (1) नवकारशी - सूर्योदय से 48 मिनिट तक आहार पाणी का त्याग । (2) पोरसी - सूर्योदय से 1 पहर तक आहार पाणी का त्याग । (3) पुरिमट्ट - सूर्योदय से 2 पहर बाद ( आधा दिन जाने के बाद) ये पच्चक्खाण आता है। 93 प दार्थ प्रदीप

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