________________
25. तुं - गुरु को मान देकर न बुलावे, लेकिन तुमे-तुम्हारे क्या काम है, एसा कहकर बुलावे । 26. तज्जात - गुरु कहे तुम भक्ति क्यों नहिं करते हो ? तब सामने बोले कि तुम भक्ति क्यों नहि करते हो ? 27. नोसुमन - अहो ! आपने अच्छा प्रवचन दिया, अच्छी वाचना दी एसा बोलने के बजाये मन में दुःखी होवे । 28. नोस्मरण - क्या इसका भी अर्थ नहि आता है, एसा गुरु को बोले। 29. परिषद्भेद - प्रवचन के समय श्रोता गण सुनने में तल्लीन हुए हो, तब वहां जाकर एसा बोले कि कहा तक चाल रखना है? 30. कथाभेद · फिर श्रोतागण को कहें कि में तुमकों अच्छी तरह समझाउँगा। 31. अनुत्थित कथा - गुरु चले जाने के बाद स्वयं अपनी हंशीयारी से विस्तार से समजावे । 32. पुव्वालवणे - जो कोई भी श्रावक गुरु को मिलने आया है, तो उनके साथ पहले से जाकर बातचीत करे । 33. उच्चासणे · गुरु के आगे उच्च / एक समान आसन पर बैठे। आशातना अर्थात एक प्रकार का अविनय ।
लोकोत्तर मार्ग को प्राप्त किये हुए जीवो में जगत के दूसरे जीवो की अपेक्षा से उच्च कोटी का विनय · मर्यादा चाहिए । विशेष - केवल मस्तक नमाकर नमस्कार करना । उसे फेटा वंदन कहते
० दो पंचाग खमासमण देकर अब्भुढिओ खामना उसे छोभ वंदन कहते
० तीसरा द्वादशावर्त वदंन ० फेटावंदन समस्त संघ परस्पर कर सकता है। ० छोभवंदन पंचमहाव्रतधारी साधु साध्वी को होता हे । ० तीसरा द्वादशावर्त वंदन पदस्थो को होता है ।
(91
पदार्थ प्रदीप