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अवग्रह (मर्यादा)
गुरुसे साडातीन हाथ दूर बेठना चाहिए। विजातीय की अपेक्षा 13 हाथ दूर रहना चाहिए। पास में बेठने से, छींक, खांसी आदि से आशातना होती है ।
स्थान
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(1) `ईच्छामि खामासमणो निसिहियाए' से वंदन की इच्छा बताना । (2) `अणुजाणह मे मिउग्गहं' से गुरु के अवग्रह में प्रवेश करने के लिए आज्ञा प्राप्त करनी ।
(3) `बहु सुभेण में दिवसो वईक्कंतो' वंदन करते समय गुरु को सुखशाता पूछना (अव्याबाध)
(4) जत्ता भे जवणि ज्जंचभे से सुखपूर्वक आपकी संयमयात्रा चलती है ? एसा गुरु को पूछना (यात्रा)
(5) खामेमि खामसमणो से आपके शरीर को समाधि है ? एसा पूछना (यापनां)
(6) अपराध क्षामणा - खामेमि खामासमणो देवसियं वईक्कमं सूत्र से दिन अथवा रात में जो अपराध (गलती) हुई है उसकी क्षमापना ।
० द्वादशावर्त वंदन गुरु को करते समय ये छ स्थान (छ अधिकार) आते
है |
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गुरुवचन
(1) छंदेण - जैसा तुम्हारा अभिप्राय - ईच्छा (गुरु शांत बैठे होय तब छंदेण बोले)
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(2) अणुजाणामि - में तुमको अवग्रह में प्रवेश करने की आज्ञा देता हैं । (3) तहत्ति - हमारा दिन समाधियुक्त पूर्ण हुआ है ।
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(4) तुब्भंपि वट्टए - तुम सुखशाता में हो ?
(5) एवं शरीर की सुखशाता है ।
(6) अहमवि खामेमि तुमं में भी तुमको क्षमापना करता खमाता हुं । ० शिष्यो की विनय पद्धति व गुरु की कितनी बडी उदारता ईधर देखने को मिलती है ।
पदार्थ प्रदीप