Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 104
________________ 12. करमोचन - राजा आदि का तो कर छूट गया, लेकिन ये वंदन के कर से मुक्त नहि हुए, एसा मानकर वंदन करे । 13. स्तेन दोष - इसको वंदन करने से मेरी लघुता होगी एसा समजकर छूपकर वंदन करे । 14. दृष्टादृष्ट - सभी के बीच में रहकर कोइ देखे नहि तब वंदन न करे देखने पर करे। 15. शठ · अंदर से कपट रखकर विश्वास पात्र बनने के लिए विधिसे वंदन करे अथवा में बीमार हं इत्यादि बहाना बनाकर अविधि से वंदन करे । 16. प्रत्यनीक - अनवसरे वंदन करे जब गौचरी करने केलिये अथवा स्थंडिल भूमि के लिये जाये तब बोले कि ठहरो मेरे वंदन करना है । 17. रुष्ट दोष - गुरु या स्वंय रोष में हो तब वंदन करे | 18. पविध्ध दोष - वंदन क्रिया को आधी छोडके भाडुत की तरह भागे । . 19. विपलिकुंचित - थोडा वंदन करके बीच में बात करे । 20. परिपिडित • सभी साधुओ को एक साथ वंदन करे । 21. टोलगति · तीड की तरह वंदन करते समय आगे चले व पीछे से कूदे । 22. कच्छपरिगित - वंदन सूत्र को उच्चारते समय कछुओ की तरह आगे पीछे खीसकते हुए वंदन करे | 23. मत्स्योध्धृत - ओक साधु को वंदन करके शीध्र धूमकर वही बैठे बैठे दूसरे साधु को वंदन करे । 24. वेदिकाबध्ध · दो हाथ के बीच में ओक घुटण - ढींचण रखकर वंदन करे । 25. अंकुश - वंदनीय साधु का वस्त्र खीचकर आसन पर ले जाय अथवा रजोहरण को अंकुश की तरह पकडे । . 26. चुडलीक - उंबाडीया की तरह रजोहरण घुमाते हुए वंदन करे | 27. शृंग दोष · अहों कार्य आदि आवर्त कपाल के बीच करने के बजाय आस पास में करे । 87 पदार्थ प्रदीप

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