Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 103
________________ - . चरवलासे अथवा मुहफ्त्तीसे दाहिने पेर की ( 3, वार) प्रमार्जना करते वंदन के 32 दोष 1. अनादृत चित्त में आनंद बिना वंदन करे, हदय में अहोभाव नहि होना । 2. स्तब्ध अभिमान से वंदन करे । "पृथ्वी काय, अपकाय, तेउकायनी रक्षा करूं' - एवं बाये पेर पर करते "वायुकाय, वनस्पतिकाय, सकायनी रक्षा करूं' बोलो. 3. तर्जना- आपको बंदन करे तो भी क्या ? न करे तो भी क्या ? आप खुश या नाराज तो होते भी नहि हो, एसा बोलकर वंदन करे । 4. हीलीत आपको वंदन करने से क्या ? औसी अवज्ञा से वंदन करे 5. मनः प्रदुष्टः वंदन के दोषो को ध्यान रखके अरुची से वंदन करे 6. भय - यदि में वंदन नहि करूंगा तो मुझे समुदाय से बहार निकालेगे एसे भयसे वंदन करे । 7. भजन्त : - मेरा भी ध्यान रखेंगे ऐसे आशयसे अथवा हे आचार्य ! हम तुमको वंदन करने के लिए खडे है, इस प्रकार का उपकार बताते वंदन करे । 8. मैत्री - मै इसको वंदन करूंगा तो ये मेरे मित्र होंगे, इनका प्रेम हमारे उपर रहेगा, इस भावना से वंदन करे | 9. कारण - वस्त्र पात्रादि के लोभ से वंदन करे । 10. गौरव - दूसरे साधु एसा जाने कि में बहोत सामाचारी कुशल हैं, इस तरह अपने गौरव को बतलाता हुआ वंदन करे । 11. कर - वंदन को कर समजकर वंदन करे दीक्षा ली इसलिए अब तो हंमेशा वंदन करना पडेगा, एसा मानकर वंदन करे । पदार्थ प्रदीप 86

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