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28. आश्लिष्टानाश्लिष्ट - वंदन करते समय ओघा को अथवा मस्तक को अंगुल का स्पर्श न करे । 29. न्यून - वंदन के सूत्र अक्षर पद अथवा वाक्य न्यून आधा बोलकर वंदन करे। 30. उत्तर चूड - वंदन करने के बाद बडे अवाज से मत्थएण वंदामि बोले। 31. मूकदोष - मन में वंदन के सत्र बोले । 32. ढड्ढर दोष - बडे अवाज से सूत्र बोलकर वंदन करे । ॥ वंदन से प्राप्त होने वाले छ गुण ॥
(1) गुरु का विनय (4) तीर्थंकर की आज्ञा पालन (2) मान का नाश (5) श्रुतधर्म की आराधना (3) गुरू पूजन (6) मोक्ष की प्राप्ति ।। वंदन नहि करने से प्राप्त होते छ दोष ।। (1) अभिमान की वृधि (4) नीच गोत्र का बंध (2) अविनय
(5) अबोधी-बोधी दुर्लभता (3) तिरस्कार
(6) संसार वृद्धि ॥ गुरू स्थापना दो प्रकार की । 1. सदाकालीन- शास्त्रोक्त विधिपूर्वक अक्ष में गुरु महाराजकी की हुई प्रतिष्ठा, साधु भगवंत के स्थापनाचार्य । 2. अल्पकालीन - गुरु के विरह में ज्ञान-दर्शन चारित्र का कोईभी (साधन) उपकरण सामने रखके नवकार पंचिदिय सूत्र बोल के गुरु की स्थापना करनी।
जैन धर्म में कोई भी क्रिया साक्षात् गुरु या गुरु के विरह में उनकी स्थापना करके करने में आती है, गुरु की साक्षी में क्रिया करने से स्थिरता व उल्लास प्रगट होता है ।
पदार्थ प्रदीप
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