Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ 12. कपित्थ दोष - मेरे कपडे मलीन हो जायंगे एसे भय से वस्त्र को संकोचकर रखना। 13. खलिन दोष - घोडे की लगाम की तरह ओघा या चरवले की दशी (गुच्छे) आगे रखना व दंडी पीछे रखना । 14. वधु दोष • बहु की तरह सिर झुकाकर काउसग्ग करना। 15. भ्रमितागुंली - अंगुली के पर्व | वेढे से काउसग्ग गीनना | 16. मूक दोष · हूँ हूँ अवाज करते काउसग्ग करना । 17. वारुणी दोष - बुड • बुड अवाज करते काउसग्ग करना । 18. वायस दोष · कौए की तरह आंख के डोले फिराते काउसग्ग रहना। 19. वानर दोष • बन्दर की तरह ईधर उधर देखते देखते व होठ के हलन-चलन से काउसग्ग करना । " स्तवन कैसा बोलना चाहिए " ० अपने आत्मा के दोषो को दर्द भरे ह्रदय से प्रगट करनेवाला संवेग व वैराग्य को उत्पन्न करनेवाला, महा अर्थवाला, परमात्मा के अनंत . उपकारो को याद करानेवाला, महापुरूषो से रचित "प्रक्चनसारोद्धार'"स्तवन बोलना चाहिए। 'सात चैत्यवंदन' 1. सुबह के प्रतिक्रमण में • जगचिंतामणी का । 2. सुबह के प्रतिक्रमण में - विशाल लोचन का । 3. सुबह मंदिर में । 4. पच्चक्खाण पारने के समय | 5. भोजन करने के बाद । 6. शाम को प्रतिक्रमण में - नमोऽस्तु वर्धमानाय का । 7. संथारां पोरिसि के समय • चउक्कसाय का । पदार्थ प्रदीप 078

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132