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अग्राज्य वदन
(1) दीक्षित पिता प्रथम दीक्षित पुत्र-पुत्री हो तो भी उसको वंदन नहि करे |
(2) दीक्षित माता - प्रथम दीक्षित पुत्र-पुत्री हो तो भी उसे वंदन नहि करे (3) बडा भाई दीक्षा में छोटा हो तो भी बडा भाई छोटे भाई को वंदन नहि करे ( बहन के सबंध मे भी इस प्रकार समझ लेना चाहिए । )
(4) रत्नाधिक- अपने से दीक्षा में छोटा हो तो उसको वंदन नहि करे. लेकिन माता-पिता या बडा भाई संसारी अवस्था में हो तो दीक्षित छोटे पुत्र / भाई को वंदन करे ।
वंदन के लिए अनवसर
(1) वंदनीय आचार्य आदि धर्म चिंता मे हो ।
(2) वंदन करने पर लक्ष न हो अथवा खडे हो ।
(3) वंदनीय प्रमाद में हो क्रोध में या निद्रा में हो ।
(4) आहार करने की लिये या वडीनिति / लघुनीति जाने की तैयारी में हो । असमय पर वंदन करने से धर्म में अंतराय, वंदन पर अलक्ष, क्रोध, रोग इत्यादि उत्पन्न होता है, इसलिए वंदन का अवसर जानकर वंदन करे |
वंदन करने का अवसर
(1) गुरु महाराज शांत व अप्रमत्त बैठे हो ।
(2) आसन पर बैठे हो ।
(3) 'छंदेण' इत्यादि कहने के लिए तैयार हो ।
छंण आदि का अर्थ 'खामेमि' 'देव गुरु पसाय' इस प्रकार प्रश्न का उत्तर देने को तैयार हो तब बंदन करना ।
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पदार्थ प्रदीप