Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 99
________________ वंदन करने के आठ कारण (1) प्रतिक्रमण में (द्वादशावर्त वंदन करे वो) (2) वाचना लेते समय गुरु को वंदन होता है वो. (3) काउसग्ग करते समय योगमें साधुओ को (क्रियाकारक साधु को ) वंदन करते है वो. (4) अपराध की क्षमा मांगते समय वंदन करते है वो. (5) प्राघुर्णक • महेमान साधु आवे तब वंदन करते है वो. (6) आलोचना करते समय गीतार्थ गुरु को वंदन करते है वो. (7) पच्चक्खाण लेते समय गुरु को वंदन करते है वो. (8) संलेखना ( अनशन ) करते समय गुरु को वंदन करते है वो. || पच्चीस - आवश्यक ।। 1 यथाजात • वांदणा देते समय साधुको केवल रजोहरण, मुहपत्ति और चोलपट्टा रखने का है . श्रावक को चरवला, मुहपत्ति धोती रखनी चाहिए । 2 अवनत - (अवनमन ) - इच्छामि खमासमणो......... निसिहियाए गुरु की इच्छा जानने को नमन करे, दो बार के वादणा में दो बार नमन। 3 प्रवेश • गुरु की आज्ञा को प्राप्त करके गुरु के अवग्रह में गुरुवंदन करने के लिए प्रवेश करना, दो वांदणा में दो बार । 1 निर्गम · पहेली बार वंदन करके गुरु के अवग्रहमेंसे बहार निकलना । 12 आवर्त · अहो, कार्य, काय, जत्ता), जवणि, ज्जचभे ये दो वांदणा के 12 आवर्त होते है। " रजोहरण अथवा चरवला मस्तक को 12 बार अंजलि का स्पर्श करना। 4 शिरनमन . "संफासं खमणिज्जो भे किलामो खामेमि खामासमणो'' बोलते ओघे को अथवा चरवले को गुरु चरण की कल्पना करके वहा मस्तक स्पर्श करना उसे शिर नमन कहते है । - 3 गुप्ति . 1. वांदणा देते समय मन को अकाकार बनाना 2. अस्खलित अक्षरो का उच्चारण करना । . 3. आवर्तो की अविराधना ( काया से ) हीनाधिक न करना पदार्थ प्रदीपEED82

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