Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 72
________________ • अंतमें 500 योजन ऊंचे मूल में उंडाई . 100 योजन लंबाई . 30209 - 6/19 अंत में गहराई - 125 योजन वर्ण - सफेद लाल लाल हरा पीला ० प्रथम दो देवकुरू को घेर कर रहे हुए है और दूसरे दो उत्तरकुरु क्षेत्र को घेर कर रहे हुए है । ये चारो पर्वत वक्षस्कार पर्वत की तरह घोडे की गर्दन के सदृश आकार को धारण करते है, अतः इनका वक्षस्कार जैसा दूसरा नाम है। मेरू पर्वत :ऊंचाई नीचे चौडाई शिखर उपर चौडाई आकार रंग बहार- 99.000 10.000 1000 गोल पीला अंदर-1000 10090 सुवर्णजैसा छ वर्षधर पर्वत चुल्लहिम महाहिम निषध नील रूक्मि शिखरी वंत वंत -वंत ऊंचाई. - 100 यो. 200. 400 400 200 100 अंदर. - 25 यो. 50 100 100 50 28 चौडाई - 1052 4210 16842 16842 4210 1052 रंग- पीला पीला लाल हरा सफेद पीला किससेबने-सुर्वण सुर्वण- सुर्वण- वैडूर्यरत्न- चांदी-सुर्वण . -मय -मय -मय -मय मय 4 वृत्तवैताढ्य, 16 वक्षस्कार प., 1 यमक, 200 कंचनगिरि 1मेरू प., 34 लंबे वैताढ्य , 2 चित्रविचित्र, 1 समक, 4 गजदंत प., 6 वर्षधर प., कुल · 269 पर्वत. (1) विद्युत्प्रभ माल्यवंत और मेरू ये तीन पर्वतो का एक एक शिखर सहस्रांक कूट कहा जाता है, वे 1000 योजन ऊंचे क्रमशः हरिकूट हरिसह कूट और मेरू उपर नंदनवन में आये हुए का नाम बलकूट है । उसका मूल में विस्तार 1000 योजन है, अतः 250 - 250 योजन दोनो 55 प दार्थ प्रदीप

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