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आपने ( वैज्ञानिक ) गुरूत्वाकर्षण की शक्ति 200 K.M. तक मानी है, उस शक्ति को लट्ट पर भी माननी पडेगी, लेकिन लट्ट उपर तो पाणी टीकता नहि है । तथा रेल की पटरी दूर से संकडी दिखती है, उस कारण से भी पृथ्वी गोल नहि मानी जा सकती है, क्योंकि दूराई के कारण एसा दिखता है । हकीकत में समानान्तर पर ही है, अन्यथा रेल के अक तरफ के पहिये नीचे आ जाते । अनेक विदेशी वैज्ञानिक भी समुद्र सफर के लिए पृथ्वी को समतल गोल मानते है।
तथा वैज्ञानिकके मत में पृथ्वी के घूमने पर भी सूर्य से दूराइ तो समान रहेती है, मोसम का परिवर्तन किस आधार पर होगा ?
___ हमारे मत में तो सूर्य उत्तरायण में सूर्य बाह्य मंडल में चला जाता है, अतः दूरांई होने से गर्मी कम लगती है और दक्षिणायन में सूर्य अभ्यँतर मंडल में आ जाता है, अतः ताप लगता है ।
खगोल शास्त्री भी सूर्य भ्रमण के अनुसार सूर्योदय आदि मानते है उसके अनुसार ही हमे ग्रह नक्षत्र आदि का सब तरह का फेरफार (ग्रह नक्षत्र संधि, चंद्र नक्षत्र संधि) इत्यादि दिखाई देता है।
इस विस्तृत विवरण का अर्थ यह नीकलता है कि पृथ्वी थाली जैसी गोल तथा स्थिर है और सूर्य घुमता है । महाविदेह में दिनरात समान होती है तथा छ ऋतु सदाकाल होती है । आज तक किसी वैज्ञानिकने धरी देखी नही है, मगर केवल अनुमान से कल्पना करते , यदि उनकी बात पर आप श्रद्धा कर सकते हो तो सर्वज्ञ वचन पर श्रद्धा करना ज्यादा श्रेयस्कर होगा।
हर वैताढ्य पर्वत की '' तमिस्रा गुफा '' और 'खंडक प्रपाता गुफा ' नाम की दो बडी गुफा है, जो चक्रवर्ती के शासन दोरान खुल्ली रहती है। अन्य काल में हमेशा बंध रहती है । ये गुफा 8 योजन उंची 12 योजन चौडी व 50 योजन लंबी होती है । चक्रवर्ती ओक गुफा में होकर काकिणी रत्न 63
पदार्थ प्रदीप