Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 89
________________ । तीन वंदना ॥ (1) जघन्य (2) मध्यम (3) उत्कृष्ट (1) जघन्य वंदना • केवल नमो अरिहंताणं अथवा कोई प्राचीन स्तुति स्तवन बोलने से जघन्य चैत्यवंदन होता है । ० केवल मस्तक नमावे ० केवल दो हाथ जोडे. ० केवल दो हाथ को मस्तक पर लगावे ० दो घुटने पर बैठकर दो हाथ जोडे ० पंचांग प्रणिपात करे (2) मध्यम वंदना में - अरिहंत चैइआणं बोलकर अन्नत्थ सूत्र के बाद ओक नवकार का काउसग्ग करके उपर ओक स्तुति बोले, चैत्यवंदन नमुत्थुणं स्तवन तथा (1) स्तुति पूर्वक स्तवना करना, अथवा जिसमें चार स्तुति व पांच दंडक सूत्र आते है, उसे मध्यम चैत्यवंदना कहते है। (3) उत्कृष्ट चैत्यवंदना - देववंदन करना जिसमें पांच शक्रस्तवे व 8 थोय ( दो थुइ जोडे ) आती है । प्रथम इरियावहि करके बाद में चैत्यवंदन करते है तो क्रियाशुध्ध होती है । (महानिशीथ) प्रणिपात - पंचांग प्रणाम करना दो घुटने + दो हाथ + 1 मस्तक ये पांचो अंग भूमि पर स्पर्श होवे इस तरह प्रणाम करना । वर्णद्वार - वर्ण अर्थात् अक्षर चैत्यवंदन मे आने वाले सूत्रो के कुल कितने अक्षर है उसका विचार इसमें है, इसलिए कम अधिक अक्षरकरके सूत्र न बोले , उसका पूरा ध्यान रखना जैसे 'सव्व' की जगह सव । ' सूत्र के नाम वर्ण संपदा जोडाक्षर पद नवकार मंत्र में 688 7 9 प्रणिपात सूत्र में 28 . . 3 पदार्थ प्रदीपED 720

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