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अधिकार (1) नमुत्थुणं से जिअभयाणं तक भावजिन का अधिकार (2) "जे अईआ सिध्धा'' से "तिविहेण वंदामि'' तक द्रव्यजिन का अधिकार ( जिनका भाव निक्षेप वंदनीय उसके नामादि तीनो निक्षेप वंदनीय है) (3) अरिहंत चे. में स्थापना जिनवंदन का अधिकार है । मंदिर में स्थापित जिन मूर्ति को वंदन इस सूत्र से होता है । (4) लोगस्स सूत्र में जिन नाम कीर्तन का अधिकार है। (5) सबलोए अरिहंत चे. से तीन भुवन रहे हुए जिन मंदिरो में स्थापित सभी जिन मूर्ति को वंदन करने में आता है । इस लिए सर्व जिन बिम्ब . वंदन अधिकार है। (6) पुक्खरवरदी से नमसामि तक 20 विहरमान जिन को वंदन का अधिकार है। (7) तमतिमिर पडल विधं श्रुतस्तव का अधिकार है । (8) सिध्धाणं युध्धाणं की प्रथम गाथा में सिध्धभगवतो की स्तुति का अधिकार । । (9) जो देवाण वि देवो से वीर भगवान की स्तुति का अधिकार (10) उज्जिंतसेलसिहरे से नेमनाथ भागवान की स्तुति का अधिकार | (11) चत्तारि अठ्ठदस दोय से अष्टापद पर स्थपित चोवीश जिन की स्तुति का अधिकार । (12) वैयावच्चगराण से संघ की वैयावच्च करने वाले शासनदेव के स्मरण का अधिकार है।
(1) जिनेश्वरदेव (3) साधु भगवंत
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" वंदनीय - 4"
(2) सिध्ध भगवंत (4) श्रुतज्ञान
पदार्थ प्रदीप