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॥ पांच अभिगम ( अेक प्रकार का विनय ) । (1) सचित्त वस्तु का त्याग करके मंदिर में प्रवेश करते समय गले में फुल का हार, हाथ में गजरा आदि हो तो मंदिर के बहार छोड कर जाना, वह प्रथम अभिगम है। (2) अचित्त वस्तु को लेकर मंदिर में जाना चाहिए, खाली हाथ देव गुरु के पास जाना न चाहिए । कमसे कम चावल बदाम वरख आदि लेकर जाना चाहिए । जहां से प्राप्त करना है वहां लेकर जाना, जैसे राजा के पास नजराना लेकर जाते है। (3) चित्त की अकाग्रता - परमात्मा के दर्शन पूजा करते समय अपना चित्त उसमें तन्मय बनना चाहिए। (4) उत्तरासंग - (खेस) - मंदिर में दर्शन पूजा करने के लिए जाते समय शरीर पर खेस धारण करना चाहिए। (5) अंजली जोडना - परमात्मा को देखते ही मस्तक झुकाकर हाथ जोडकर 'नमोजिणांणं' बोलना । राजा मंदिर में दर्शन पूजन करने जाय तब तलवार, छत्र, जुते, मुगट व चामर ये पांच चीज बहार छोडनी चाहिये ।
"प्रभु दर्शन की दिशा " मंदिर में परमात्मा के दर्शन करते समय पुरूषो को परमात्मा की दाहिनी तरफ व महिला को परमात्मा की बायी तरफ खडा रहना चाहिये ।
'' अवग्रह " जघन्य - कमसे कम परमात्मा की मूर्ति से नव हाथ। मध्यम • 10 से 59 हाथ । उत्कृष्ट - 60 हाथ दूर रहकर दर्शन करना चाहिये।
प्रभ को अपना दुर्गंधी श्वासोश्वास-सांस न लगे इस आशातना से बचने के लिए अवग्रह रखने का है। ( 71
पदार्थ प्रदीप