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आलंबन त्रिक
(1) सूत्र आलंबन - चैत्यवंदन में आते हुए सूत्रो का स्पष्ट उच्चार करना व उस अक्षरो में (शब्दो में ) बोलते समय ध्यान रखना । (2) अर्थ आलंबन · चैत्यवंदन के सूत्र बोलते समय उसके अर्थ-भावार्थ का भी साथ में ध्यान रखना, केवल पोपट की तरह शुष्क ह्रदय से न बोलना, उसका कुछ भी लाभ नहि है, इसलिए चैत्यवंदन का पूरा लाभ उठाना हो तो उसका अर्थ -भावार्थ का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है । अर्थ के ज्ञान से क्रिया करने में अतिशय भावोल्लास जाग्रत होता है । (3) मूर्ति आलंबन - चैत्यवंदन करते समय अपनी नजर परमात्मा के सामने रखनी चाहिये ।
। मुद्रात्रिका (1) योग मुद्रा - हाथ की अंगुली को ओक दूसरे के बीच में डालकर दो हाथ जोडकर कोणी-कोहनी को पेट पर रखकर हाथ जोडना । चित्र - २
जिन मुद्रा
(2) मुक्तासुक्ति मुद्रा - (मोती के ) छीप की तरह दो हाथ की अंगुलीओ के अग्रभाग को जोडकर, हाथ बीच में से पोले खोखले रखना और कपाल पर लगाना 'जावंति' जावंत के विसाहु "जयवीयराय'' सूत्र इस मुद्रासे बोले जाते है। 69
पदार्थ प्रदीप