Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 84
________________ (प्रदक्षिणा के दोहे काल अनादि अनंत थी भव भ्रमण नो नहि पार, ते भ्रमण निवारवा प्रदक्षिणा दउं त्रणवार ||1|| ज्ञान वडु संसारमा , ज्ञान परम सुख हेत, ज्ञान विना जग जीवडा न लहे तत्व संकेत..||2|| भमती मां भमता थका , भव भावठ दूर पलाय, ज्ञान दर्शन चारित्र रूप त्रण प्रदक्षिणा देवाय ।।3।। जन्म मरणादि भय टले सीझे वंछित काज, रत्नत्रय प्राप्ति भणी दर्शन करो जिनराज ||4|| प्रणाम त्रिका ) (1) अंजलीबध्ध प्रणाम - परमात्मा को देखते ही मस्तक उपर दो हाथ जोडकर थोडा सा मस्तक नमाना । (2) अर्धावनत प्रणाम - परमात्मा के आगे स्तुति बोलते पहले कटि भाग से नीचा नमना । आधा शरीर को झकाना (3) पञ्चांग प्रणाम - दो घुटन, दो हाथ, और एक मस्तक ये पांच अंगो को इक्कट्ठा करके प्रणाम करना..... भूमि पर लगाकर स्पर्श करना । चित्र देखीये..... चित्र - 67 पदार्थ प्रदीप

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