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० भूमि कूट भूमि उपर जो शिखर होते है ।
० ऋषभकूट - 34 विजयो में आमने-सामने पर्वत से निकलने वाली मूल नदीया अपने प्रताप कुंड में गिरके टेडी होती है । प्रतापकुंड के बीच में ऋषभ कूट होता है, उसके उपर ऋषभ नामका अधिष्ठायक देव है, जब चक्रवर्ती चोथे खंड को जितकर लघु हिमवंत के हिमवंत देव को जितने के बाद वापस लोटते समय ऋषभकूट कोअपने रथ के अग्रभाग से तीन बार स्पर्श करता है और काकिणी रत्न से पूर्व दिशामें अपना नाम लिखता, है ।
० करिकूट - महाविदेह क्षेत्र में मेरू की तलहटी में भद्रशाल नामके वन में दिशा और विदिशाके बीच में आठ आंतरे में आठ हाथीके आकार वाले भूमि उपर शिखर है, वो दिग्गजकूट, हस्तिकूट, करिकूट कहलाते है, उसके उपर उन उन कूट के नामवाले आठ देवभवन है ।
• जंबूकूट - महाविदेह क्षेत्र में आये हुए उत्तरकुरूक्षेत्र में जंबूद्वीप के अधिष्ठाता अनादृत देव के रहने योग्य छोटे बडे जंबूवृक्ष के परिवारवाला बडा जंबूवृक्ष है, उसके आस पास में 100-100 योजन विस्तार वाले तीन वन घेरा डाले हुए है । उसमें से प्रथम वनमें आठ विदिशा में जांबूनद सुवर्णमय ऋषभकूट जैसे 8 भूमिकूट पर्वत है । हर अंक के उपर 1 कोश लंबे 1/2 कोश विस्तार वाले और थोडा कम 1 कोश ऊंचे शाश्वत सिध्धायतन है ।
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० शाल्मिलि कूट - गरूडवेग देव के रहने योग्य जंबूवृक्ष की तरह शाल्मलिवृक्ष देवकुरू में है, उसके प्रथम वनमें शाल्मलि कूट रूप्यमय है, उसका स्वरूप जंबूकूट की तरह है ।
० तीर्थ - जलाशय में उतरने का स्थान ढाल
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इस भरत क्षेत्र में गंगा और सिंधू नदी के समुद्र के संगम स्थानमें जहां 'लवणसमुद्र में प्रवेश किया जाता है। वो मागध और प्रभास नाम के दो तीर्थ है, बीच में वरदाम नाम का तीर्थ है ।
से
• इस तरह भरत
रावत और महाविदेहक्षेत्र के 32 विजयो में मिलकर
102 तीर्थ है ।
हर तीर्थ
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के किनारे से 12 योजन दूर समुद्र में मागधादि देव के राजधानी वाले मागधादि द्वीप है ।
समुद्र
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पदार्थ प्रदीप