Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 70
________________ (नीलवंत प.) 16842 2/19 5. रम्यक् क्षे. 84211/19 (रूक्मि प.) 421010/19 6. हैरण्यवत क्षे. 21055/19 (शिखरी प.) 1052 12/19 7. औरावत क्षे. अर्धचन्द्राकार तीनोतरफ लवणसमुद्र है 526 1/19 कुल • 1,00,000 यो. उपर कहे हुए क्षेत्रो के नाम अनादि काल से इसी तरह शाश्वतभाव वाले है । अथवा उस क्षेत्र के अधिष्ठायक देव के नाम उपर से ये नाम है । अर्थात् उस क्षेत्र के अधिष्ठायक देव के भी नाम इसी तरह है। सोल वक्षस्कार पर्वत. ० महाविदेह क्षेत्र की पूर्व तरफ दो भाग में बंटी हुई 16 विजय और पश्चिम तरफ से दो भाग में बंटी हुई 16 विजय है, उसमें विजय - वक्षस्कार - विजय - अंतरनदी - विजय - वक्षस्कार - विजय · अंतरनदी ऐसे क्रमसे हर भाग में चार वक्षस्कार पर्वत है, चारो भागो के मिलकर 16 वक्षस्कार पर्वत होते है। ०जैसे विजय आमने-सामने है उसी तरह ये पर्वत भी आमने-सामने है, यानि अक पर्वत निषध पास से शरु होकर उत्तर तरफ जाता है और सामने का पर्वत नीलवंत पांस से शरु होकर दक्षिण तरफ जाता है, और दोनो की प्रारंभ में उचाई 400 योजन होती है, और धीरे धीरे बढती बढती अंत में 500 योजन की उंचाई होती है इसलिये उनका आकार घोडे की गर्दन जैसा बनता है। पदार्थ प्रदीप

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