Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 67
________________ चोवीश दंडक में तीन वेद 1. ग. तिर्यञ्च में - तीन वेद 13 - देवदंडक में (स्त्री. पु.) 1. ग. मनुष्य में - तीन वेद 9 - शेष दंडक में (नपुंसक) . [सम्मूर्छिम तिर्यञ्च पञ्चे. एवं सम्मूर्छिम मनुष्य में चोवीश द्वार 1. शरीर - सभी को औदा. तैजस, कार्मण तीन शरीर होते है। 2. अवगाहना - सभी सम्मूर्छिमो की जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग है और उत्कृष्ट अवगाहना .. जलचर की - 1000 योजन, उरपरिसर्प की · योजनपृथकत्व चतुष्पद की · गाउ पृथक्त्व, भुजपरिसर्प की - धनुष पृथक्त्व खेचर की - धनुष पृथक्त्व, समूर्छिम मनुष्य की - अंगुल का असंख्यातवाँ भाग 10. द्रष्टि - मिथ्याद्रष्टि और सम्यग्द्रष्टि ये दो द्रष्टि सम्मू. पं. को होती है । कितने सम्मू. ति. पं. को अपर्याप्त अवस्थामें सास्वादन का सद्भाव होने से सम्यग्दृष्टि माने जाते है । लेकिन पर्याप्त अवस्था में तो मिथ्यादृष्टि हि होते है । स. मनु : तो दोनो अवस्था में मिथ्यादृष्टि ही होते है । 18. स्थिति - सम्मू. जलचर का आयुष्य - ओक पूर्व क्रोड वर्ष चतुष्पद का · 84,000 वर्ष, उरपरिसर्प का 53,000 वर्ष, भुजपरिसर्ती का - 42,000 वर्ष, खेतचर का - 72,000 वर्ष उत्कृष्ट आयुष्य है । सभी का जघन्य आयुष्य - अन्तर्मुहूर्त है, समू. मनुष्य का जघन्य एवं उत्कृष्ट आयुष्य - अन्तर्महर्त है । 19. पर्याप्ति - सभी को मनः पर्याप्ति बिना पांच पर्याप्ति है, परंतु फर्क इतना है कि सम्मू. ति. पन्चे. जीव पांचो पर्याप्ति पूर्ण कर सकते है । और सम्मू. मनुष्य पांचो पर्याप्ति पूर्ण किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त करते 21. संज्ञा - सभी को हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा होती है । पदार्थ प्रदीप 50

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