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का बनाया हुआ उत्तरवैक्रिय शरीर 15 दिन तक रहता है ० नये शरीर के साथ आत्मप्रदेशकी श्रेणी बनती है, और नया शरीर विलय होने पर आत्मप्रदेश पूराने शरीर में मिल जाते है । जैसे इन्द्र उपरसे यहां आता है, तो इतनी लंबी श्रेणी बनती है । ० आहारक की जघन्य अवगाहना प्रारंभ में न्यून ओक हाथ होती है और उत्कृष्टसे अक हाथ, यह अंतर्मुहूर्त रहेता है, भवचक्रमें चार बार यह शरीर बना सकते है।
तैजस, कार्मण शरीर जघन्य अवगाहना अंगुलका असंख्य भाग और उत्कृष्ट सम्पूर्ण लोक प्रमाण होती है (केवलि समुद्घातके समयं दोनो शरीर पूरे लोकमें प्रसर जाते है।
| चोवीश दंडकमें छ संघयण 5 स्थावर · हड्डी का अभाव विकलेन्द्रिय · छेवटु
होनेसे संघयण रहित 13 देवदंडक . " 1 ग. मनुष्य . छ संद्ययण 1 नारक .
1 ग. तिर्यन्च . " ० सभी को चार या दश संज्ञा होती है।
चोवीश दंडकमें छ संस्थान
० देवो का उत्तरवैक्रिय संस्थान तो सिधांतमें अनेक तरह का बताया है। ० नारकोका हुंडक संस्थान उखडे हुए पंखवाले पक्षी जैसा भयंकर होता
13 देवदंडक • समचतुरस्त्र 1 ग. मनुष्य · छ संस्थान 1 ग. तिर्यन्च छ संस्थान ० सभी को चार कषाय होते है । ० इन्द्रिय द्वार सुगम है।
3 विकलेन्द्रिय - हुंडक 1 नारक - हुंडक 5 स्थावर - हंडक
पदार्थ प्रदीप
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