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चोवीश दंडक में भवस्थ शरीर की अवगाहना
4 पृथ्वीकायादि की
जघन्य अव . अंगुल
का असं. भाग
1 नारक
13 देव
तिर्यन्च
...
41
उत्कृष्ट अव. अंगुल का असं. 500 धनुष
सात हाथ
1000 योजन
भाग
1 ग. 1 वनस्पति
2 मनुष्य, तेइन्द्रिय
1 बेइन्द्रिय
1 चउरिन्द्रिय
० तेइन्द्रियादि की उत्कृष्ट अवगाहना ढाई द्वीप के बहार पाई जाती है । अंतर्मुहूर्त आयुष्य वाला आसालिक नाम का प्राणी उत्पन्न होते ही 12 जोजन का बन जाता है, शीघ्र मरने के बाद वह इतना बडा खड्डा बना देता है कि चक्री सैन्य उसमे डुब जाता है, वह बेइन्दिय जीव होता है ( अन्य मत में उसे उरपरिसर्प पंचेन्द्रिय बताया है ) अर्थात् इसका ढाई द्वीप में भी संभव है ।
• गर्भज तिर्यञ्च हजार योजन के होते है, वे स्वयंभूरमण नामके अंतिम समुद्र में होते है ।
• सभी का उत्तरवैक्रिय शरीर प्रारंभ में अंगुलका संख्यातवां भाग ही होता है, और उत्कृष्टसे देवका लाख जोजन, मनुष्यका लाख जोजन से चार अंगुल अधिक होता है, शिर पर दोनो समान है लेकिन देव भूमिसे चार अंगुल उपर रहते है और मनुष्य भूमि को छूके रहते है । तिर्यन्च का 900 योजनं, नारक का अपने भव से दुगुणा, वायुकाय का तो अंगुल का असंख्यात वाँ भाग ही होता है । नारकने बनाया हुआ उत्तरवैक्रिय अंतर्मुहूर्त तक रहता है, मनुष्य और तिर्यन्च ने बनाया हुआ वैक्रिय शरीर चार र्मुहूर्त तक टीकता है । ( जीवाभिगम, भगवती में अंतर्मुहुर्त कहा है ) देव
पदार्थ प्रदीप
1000 योजनसे अधिक
तीन कोश
12 योजन
1 योजन