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'योग'
योग आत्मप्रदेशो का आंदोलन हलन चलन लेकिन वह पुद्गल के सबंध से ही होता है। 1. मनोयोग - काययोगसे आत्मा मनोवर्गणा को ग्रहण करके उसे मन रुप में परिणत करके चिंतन करता हुआ आत्मा उस वर्गणा को छोड़ देता है, उसे मनोयोग कहते है। 2. वचनयोग : उसी प्रकार भाषा वर्गणा ग्रहण कर उसे वचन रुप में परिणत करके आत्मा बोलता हुआ उस वर्गणा को छोडता है । 3. काययोग - औदारिक आदि शरीर वर्गणा से निर्मित शरीर द्वारा प्रवृत्ति करना वो काययोग है। (1) सत्यमनोयोग • यथावस्थित गुण स्वभाव का विचार करना। (2) असत्यमनोयोग - सत्य से विरुद्ध विचार करना । (3) मिश्र मनोयोग - थोडा सत्य और थोडा असत्य विचार करते समय मिश्र मनोयोग होता है। 4. असत्यअमृषा - जिस विचार को व्यवहार दृष्टि से सत्य या असत्य भी न कहा जा शके । जैसे आओ, बेठो इत्यादि विचार तथा पशु आदि का अस्पष्ट विचार । वचनयोग के इसी प्रकार चार भेद है।
'काययोग' सात प्रकार के है ।
1. औदारिक काययोग - औदारिक शरीर से होनेवाली क्रिया के समय आत्मा में जो व्यापार होता है, वह औदारिक काययोग । 2. औदारिक मिश्र काययोग - कार्मण शरीर एवं औदारिक शरीर अथवा औदारिक शरीव एवं वैक्रिय अथवा आहारक शरीर के मिश्रणवाले शरीर की चेष्टा के समय आत्मा में प्रवृत्त होता व्यापार ।
पदार्थ प्रदीपERED(36