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चावीश दड़क के नान
० सात नरक · (1) रत्नप्रभा (2) शर्कराप्रभा (3) वालुकाप्रभा (4) पंकप्रभा (5) धूमप्रभा (6) तमःप्रभा (7) तमतमःप्रभा
( सात नरक का 1 दंडक) ० दस भवनपति देव · (1) असुरकुमार (2) नागकुमार (3) विद्युत्कुमार (4) सुवर्णकुमार (5) अग्निकुमार . (6) द्वीपकुमार (7) उदधिकुमार (8) दिशिकुमार (9) वायुकुमार (10) स्तनितकुमार । (भवनपति के 10 दंडक) ० अकेन्द्रिय के पांच दंडक - (1) पृथ्वी काय (2) अप्काय (3) तेउकाय (4) वायुकाय (5) वनस्पतिकाय | ० विकलेन्द्रिय के तीन दंडक - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चइरिन्द्रिय ० गर्भज तिर्यन्च का 1, गर्भज मनुष्य का 1, 16 व्यन्तरो का 1 और 26 वैमानिक देवोका 1 दंडक, इस प्रकार कुल मिलाकर 24 दंडक हुआ ।
( पांच प्रकार के शरीर )
1. औदारिक शरीर - विशाल, उदारगुण, उत्तम, स्थूल, उंचा शरीर होने से औदारिक कहते है, तीर्थकर गणधर आदि का यह शरीर होने से इसे विशाल आदि विशेषण दीये गये है। 2. वैक्रिय शरीर - विविध-विचित्र क्रिया इससे होती है, अतः वैक्रिय कहते है। 3. आहारक शरीर - आमर्षांषधि आदि लब्धिमंत चौद पूर्वधर मुनि तीर्थकर की ऋधि देखने व शंका समाधान के लिये आहारक वर्गणा से यह शरीर बनाते है, यह वैक्रिय शरीर से बहोत तेजस्वी एक हाथ का होता है, संसार चक्र में यह चार बार ही बनाया जाता है । 27
पदार्थ प्रदीप