________________
(12) मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से । (13) रति मोहनीय के उदय से | (14) अरति मोहनीय के उदय से । (15) जुगुप्सा मोहनीय के उदय से। (16) शोक मोहनीय के उदय से ।
छ प्रकार के संस्थान
संस्थान - सामुद्रिक शास्त्र में जिस तरह प्रमाण बताया है, उस प्रमाण से युक्त या उस प्रमाण से अयुक्त शरीर का आकार। 1. समचतुरस्त्र संस्थान - शरीर के सभी अवयव सामुद्रिक शास्त्र में बताये गये प्रमाण से युक्त हो । जैसे पद्मासन में बेठा हुआ मनुष्य के बाये घुटन से दाया खंध, दाये घुटण से बाया खंध, दाये घुटण से बाया घुटण, पर्यंकासन के मध्य भागसे नासिका का अग्र भाग समान हो । 2. न्यग्रोध परिमण्डल - नाभि के उपर के अवयव प्रमाणयुक्त, नाभी के नीचे के अवयव प्रमाण से अयुक्त हो । 3. सादि - पैर के तलीये से लगाकर नाभि तक अर्थात् शरीर का अधोभाग प्रमाण युक्त हो और उपर का आधा भाग प्रमाण से अयुक्त हो। 4. वामन - मस्तक, ग्रीवा, हाथ और पेर ये चार अवयव प्रमाण युक्त हो और शेष (पीठ-पेट-छाती) प्रमाण से अयक्त हो । 5. कुब्ज - मस्तक आदि चार अवयव प्रमाण से अयुक्त हो और पीठ आदि अवयव प्रमाण से युक्त हो । 6. हंडक - शरीर के सभी अवयव प्रमाण से अयुक्त हो ।
चार प्रकार के कषाय
कषाय मतलब मलिनता । कर्म बंध का मुख्य कारण कषायरुपी आत्मा की मलिनता है । 'कष' संसार 'आय' लाभ जिससे संसार का लाभ हो ।
पदार्थ प्रदीप
30