Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 33
________________ 3. शीत परिषह - कड़ाके की ठंडी को सहन करना, लेकिन अग्नि से ठंडी को दूर न करना । 4. उष्ण परिषह - गर्मी को सहन करना, लेकिन पंखे आदि से गर्मी को दुर न करना । 5. दंश परिषह - दांस मच्छरादि की पीडा को सहन करना, लेकिन खिन्न न होना। 6. अचेल परिषह · शरीर को ढकने के लिए जीर्ण शीर्ण सादे वस्त्र का उपयोग करना, लेकिन नयी फेशन वाले किमती वस्त्र का उपयोग न करना, वस्त्र फट जाने पर भी खेद न करे । 7. अरति परिषह - मन चाही वस्तु की अप्राप्ति में मन को उद्वेग ग्रस्त न बनाना तथा संयम में तकलिफ पड़ने पर भी चारित्र के उपर अरति | नाखुश मन न बनाना । 8. स्त्री परिषह - स्त्री के रंग रूप देखकर मोहित न बनना । 9. चर्या परिषह - एक गांव से दूसरे गांव विहार करना उसमें आती हुई कठिनाई को सहन करना । 10. निषद्या परिषह - श्मशान, शून्य घर में ध्यान करते उपद्रव को सहन करना । 11. शटया परिषह - उंची -नीची भूमि हवा प्रकाशादि के अभाव के कारण प्रतिकूल वसति में संथारा करना । लेकिन मन से खेद उत्पन्न न करना। 12. आक्रोश परिषह - कटु कठोर वचन को समभाव से सहन करना । 13. वध परिषह- कोइ पत्थरादि से मारे या प्राणांत कष्ट दे, तो भी उसका सामना न करें, उसके उपर शुभ भाव रखे। 14. याचना परिषह - संयम जीवन निर्वाह के लिए उपयोगी पदार्थ को मांगने में शरम न रखे। 15. अलाभ परिषह - निर्दोष भिक्षा की प्राप्ति के लिए अनेक घर फिरे फिर भी यदि गोचरी न मिले, तो तपोवृध्धि समजना मगर उद्वेग न करे। पदार्थ प्रदीप 16 Lallallallan

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