Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 35
________________ 10. ब्रह्मचर्य - मैथुन का त्याग करना, संपूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन . करना। बार प्रकार की भावना " . 1. अनित्य भावना - इस संसार में सभी पौद्गलिक पदार्थ नश्वर है। . 2. अशरण भावना - अरिहंतादि के अलावा इस संसारमें कोई शरणभूत नहि है। 3. संसार भावना - इस संसार में दुःख ही दुःख है, सारभूत तो केवल मोक्ष है। 4. ओकत्व भावना - इस संसारमें हमारा कोइ नहि है, जीव अकेला ही सुख दुख का अनुभव करता है। 5. अन्यत्व भावना - देह से आत्मा भिन्न है, संसारी सबंध सब झूठे 6. अशुचि भावना -- मांस.चरबी वीर्य आदि सात धातु से बना हुआ . शरीर दुर्गंधमय है । हर पल उसमेंसे अशुचि निकलती रहती हैं । 7. आश्रव भावना - में यदि आश्रव के द्वारा कर्म का चयन करते रहूंगा तो संसार का अंत. कब होगा । 8. संवर भावना - यदि यह तत्व नहीं होता तो कर्म का प्रवाह नहि अंटकता, इस लिए ज्यादा से ज्यादा संवर का आचरण हितावह है । 9. निर्जरा भावना - अकाम निर्जरा से कर्म का क्षय होता है, लेकिन वापिस कर्म बंध हो जाता है, अब तो में बारह प्रकार के तप का सेवन कर कर्म निर्जरा करूंगा । 10. लोक स्वभाव भावना - चौद राजलोक के संस्थानादि स्वरूप का विचार करना । धर्मास्तिकायादि छद्रव्य का विचार करना । 11. बोधि दुर्लभ भावना - समकित की प्राप्ति इस संसार में बहोत ही दुर्लभ है। पदार्थ प्रदीप 18

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