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[निर्जरा तत्त्व
छ बाह्य तप 1. अनशन - अशन, पान, खादिम, स्वादिम ये चार प्रकार के आहार का त्याग करनां इसके दो भेद (1) इत्वरकथित - थोडे समय के लिए - उपवास आदि (2) यावत्कथित - जीवन के अंत तक आहार का त्याग करना। 2. उणोदरी - पुरूष के 32 व स्त्री के 28 कवल का आहार शास्त्र में बताया है । उससे कम आहार लेना । 3. वृत्ति संक्षेप - द्रव्य , क्षेत्र, काल और भाव से आहारादि में प्रमाण तय करना । जेसे दक्षिण क्षेत्र के दोपहर के समये अल्प मूल्य वाले गऊं की रोटी में ग्रहण करूंगा। 4. रस त्याग - छ प्रकार की विगईमेंसे ओक या उससे ज्यादा विगई का त्याग करना । दूध, दही, घी, तेल, गुड, पकवान । 5. कायक्लेश · कर्म का क्षय करने के लिए शरीर को लोच विहारादि का कष्ट देना । 6. संलीनता - शरीर के अंगोपांग का पूरे पूरा ध्यान रखना, स्थिर रखना ।
'' छ अभ्यन्तर तप "
1. प्रायश्चित्त - जीवन में कीये हुए पापो की शुध्धि के लिए गुरु के पास पश्चाताप पूर्वक पाप प्रगट करना ।
(प्रायश्चित्त के 10 प्रकार है ) 2. विनय · देव गुरु वडिल आदि का विनय बहुमान आदि करना । 3. वैयावृत्य - संयमी, तपस्वी, ग्लानादि 10 प्रकार के महात्माओ की आहार, वस्त्र, वसति आदि से भक्ति सेवा करना । पदार्थ प्रदीप
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