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रत रहने वाला अंतराय कर्म बांधता है । ० जीवादि नवतत्व उपर श्रध्धा करना समकित है । एक बार अंतर्मुहुर्त मात्र समकित का स्पर्श हो जाय तो वह जीवात्मा अर्धपुद्गल परावर्त में अवश्य मोक्ष में जाता है।
संसारी अवस्था के अनुसार सिध्ध के 15 भेद है।
1. जिन सिध्ध - तीर्थकर होकर मोक्ष में जाना । 2. अजिन सिध्ध • सामान्य केवली होकर मोक्ष में जाना । 3. तीर्थ सिध्ध · शासन स्थापना के बाद तीर्थ का आश्रय लेकर मोक्ष में जाने वाला। 4. अतीर्थ सिध्ध • तीर्थ स्थापना के पूर्व हो या तीर्थोच्छेद होने पर मोक्ष जाने वाला। 5. गृहीलिंग सिध्ध - गृहस्थ वेष में सिध्ध होना । 6. अन्य लिंग सिध्ध · तापसादि वेष में सिध्ध होना । 7. स्वलिंग सिध्ध • साधु वेष में सिध्ध होना । 8. स्त्रीलिंग सिध्ध • स्त्रीलिंग में सिध्ध होना । 9. पुरुष लिंग सिध्ध · पुलिंग में सिध्ध होना 10. नपुंसक लिंग सिध्ध - कृत्रिम नपुंसक रूप में सिध्ध होना 11. प्रत्येक लिंग सिध्ध - मात्र अक ही निमित्त पाकर वैराग्यवान बनकर सिध्ध होना । 12. स्वयं बुध्ध सिध्ध - स्वतः वैराग्य पाकर मोक्ष में जाना । 13. बुध बोधित सिध्ध - गुरु उपदेश से बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाला। 14. ओक सिध्ध - अक समय ओक ही सिध्ध हो वह । 15. अनेक सिध्ध - ओक समय मे अनेक सिध्ध होना ।
पदार्थ प्रदीप