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० उत्कृष्ट स्थिति - 20 कोडाकोडी सागरोपम ० मोहनीय की जद्यन्य स्थिति - अंतर्मुहुर्त ० उत्कृष्ट स्थिति - 70 कोडाकोडी सागरोपम ० आयुष्य की जघन्य स्थिति - अंतर्मुहुर्त ० उत्कृष्ट स्थिति - 33 सागरोपम
[ कर्म बंध के कारण । 1. ज्ञानावरणीय कर्म का बंध - ज्ञान और ज्ञानी की आशातना करनेसे पढने में अंतराय करने से , कागज उपर सोने से , ज्ञानके साधनोको पेशाब व संडास में साथ ले जाने से, थंक लगाने से, पेन मुंह में डालने से, पेन से हाथ उपर लिखने से इत्यादि । . 2. दर्शनावरणीय कर्म का बंध - जिनदर्शन करने वाले को रोकने से, सिनेमा नाटक आदि देखने में रुचि करने से , इन्द्रियो का दुरुपयोग करने , से । 3. वेदनीय कर्म का बंध - देव गुरु की भक्ति बहमान करनेसे शातावेदनीय कर्म का बंध, कीसी को भी दुःखी करने से अशाता वेदनीय कर्म का बंध । 4. मोहनीय कर्म का बंध- कषाय आदि में ज्यादा रक्त रहने से, उन्मार्ग देशना से, देवद्रव्य के भक्षण से । 5. आयुष्य कर्म का बंध · तपस्यादि करने से देवायु का बंध, सरल परिणामी दयालु/अल्पकषायी होने से मनुष्य आयु का बंध, कपट माया रखने से तिर्यंचायु का बंध / रौद्र भावसे महारंभादि परिग्रह से नरकायु का बंध होता है। 6. नाम कर्म का बंध - सरलता व गारव रहित से शुभ नाम कर्म का बंध
और गर्व करने वाले को अशुभ नाम कर्म का बंध होता है | 7. गोत्र कर्म का बंध - गुणानुरागी, मदरहित, पढने पढाने में रुचि रखने वाला उच्चगोत्र बांधता है । विपरीत आचरण वाला नीच गोत्र बांधता है। 8. अंतराय कर्म का बंध - जिनपूजादि में विध्न करने वाला हिंसादि में
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प दार्थ प्रदीप