Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 34
________________ 16. रोग परिषह - रोग आने पर भी दोषित दवाई से इलाज न करें, सहन करें । 17. तृण-स्पर्श परिषह - कांटा डाभ आदि के संथारे पर सोवे, कांटा आदि छुभने से पीडा हो तो सहन करे, लेकिन उद्वेग न करना । 18. मल परिषह - पसीने के कारण शरीर मलिन होवे तो भी स्नान की इच्छा न करें । सत्कार सन्मान आदि प्राप्त होने से गर्व न 19. सत्कार परिषह करे | 20. प्रज्ञा परिषह - हम बडे विद्वान है, एसा गर्व न करें । 21. अज्ञान परिषह - महेनत करने पर भी कुछ याद न होवे तो कर्मविपाक समजना लेकिन हताश न होना । अन्य की इर्ष्या न करें । 22. सम्यक्त्व परिषह - जिन भाषित क्चन में शंका न करें, समजने के लिए प्रयत्न करे । दस प्रकार का यतिधर्म 1. क्षमा - क्रोध का त्याग करना, और समता भाव रखना । 2. मृदुता नम्रता, लघुता रखना, अभिमान का त्याग करना | 3. आर्जव - कुड-कपट, माया, आदि का त्याग करना 4. मुक्ति - लोभ वृति का त्याग करना, जीवन में संतोष रखना 5. तप - इच्छा का निरोध करना, बार प्रकार के तप का सेवन करना । 6. संयम - इन्द्रिय का दमन करना, प्राणातिपात आदि पाप से 1 अटकना । 7. सत्य - प्रिय हितकारी सत्य वचन बोलना । 8. शौच - मन, वचन, काया की पवित्रता ( शुध्धि ) रखनी । 9. अकिंचनत्व - धनादि सर्व ममत्वरूप परिग्रह का ( मूर्च्छा) का त्याग करना । 17 पदार्थ प्रदीप

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