Book Title: Padarth Pradip
Author(s): Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 32
________________ संवर-तत्त्व • आश्रव को रोकनेवाला संवर है, उसके समिति आदि 57 भेद है। समिति - आगम के अनुसार प्रवृत्ति करना । 1. इयर्यासमिति - यतना पूर्वक युग-3/4 फुट प्रमाण आगे की भूमि को देखते-देखते चलना । 2. भाषा समिति - निरवद्य, निर्दोष, उचित स्वर से मुहपत्ति का उपयोग करके प्रियकर / हितकर बोलना | 3. एषणा समिति - बेंतालीस दोष से शुध्ध आहार ग्रहण करना । 4. आदानभंडमत्त निक्षेपणा समिति - वस्त्र पात्रादि को देखकर प्रमार्जना करके लेना व रखना । 5. पारिष्ठापनिका समिति - त्याज्य द्रव्य (मल-मूत्रादि) यतना पूर्वक निर्जीव भूमि पर छोडना / डालना । 1. मनो गुप्ति - अशुभ विचार से मन को दूर/गुप्त रखना / शुभमें मन परोना । 2. वचन गुप्ति - सावध, पापकारी वचन न बोलना, मौन रखना 3. कायगुप्ति - शरीर से सावध प्रवृति नहि करना । शुभमें प्रवृत्ति करना । बावीस - परिषह संयम मार्ग से भ्रष्ट न होवे और कर्म की निर्जरा के लिए आने वाले उपद्रवो को शम भाव से सहन करना वह परिषह जय है 1. क्षुधा परिषह - निर्दोष आहार न मिले तो भूख सहन करना, लेकिन दोषित आहार न लेना । 2. तृष्णा परिषह - प्यास को सहन करना, लेकिन सचित्त पानी न पीना । 15 पदार्थ प्रदीप

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