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होता, अतः पशु की तरह मर्यादा भंग करते है। ० विपरीत रुप से उत्सर्पिणी होती है। - पुण्यतत्व - देव-मनुष्य गति, सुख का अनुभव | सुंदर सामग्री की प्राप्ति, निरोगी काया ये सब पुण्य प्रकृति का फल है। ० सात क्षेत्र का यथोचित कृत्य करने से.पुण्य का बंध होता है जिनालय, जिनबिंब, जिनागम, साधु, साध्वी , श्रावक, श्राविका ये सात क्षेत्र है। ० अनुकंपादानं तथा अकामनिर्जरा अज्ञांन तप से भी पुण्य बंध होताहै। 1. पुण्यानुबंधी पुण्य - जिस पुण्य के उदय में नये पुण्य का बंध होता है । शालीभद्र.... 2. पापानुबंधी पुण्य · जिस पुण्य के उदय में नये पाप का बंध होता है । वेश्या..... 3. पुण्यानुबंधी पाप - जिस पाप के उदय में नये पुण्य का बंध होता है । पुणिया श्रावक.... 4. पापानुबंधी पाप - जिस पाप के उदय में नये पाप का बंध होता है । कालसौरिक कसाई..... पापतत्व · दुःख के अनुभव का मूल कारण पापतत्त्व है, जैसे की नरकगति, तिरस्कार की प्राप्ति, कुरूप, अज्ञानता इत्यादि।
सवाल
आश्रव - जिस के द्वारा आत्मा में शुभ-अशुभ कर्म का आगमन हो । 1. इन्द्रिय - भौतिक इन्द्रिय के स्व स्व विषय में आसक्ति से अशुभ कर्म का बंध होता है । उनको यदि प्रभु भक्ति आदि में जोडा जाय तो शुभ कर्म का बंध होता है। 2.कषाय - स्वार्थ के लिए क्रोधादि करना, परमार्थ हो तो शुभ कर्म बंध। 3. अविरति - व्रत-नियम रहित जीवन, हिंसादी पाप नहि करने पर भी उस का प्रतिबंध न होने के कारण उस संबंधी पाप लगता रहता है । पदार्थ प्रदीप
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