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आधासः
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मृलागना अनिच्छा प्रवृत्त मरण है.
जो दुर्गतिको जानेवाले हैं, जिनका चित्त विपयोंमें आसक्त हुवा है, जिनके हृदयमें अज्ञानांधकार छाया हुवा है. जो ऋद्धिमें आसक्त हुवे हैं, रसोंमें आसक्त हुवे हैं, और सुखका अभिमान रखते है अर्थात् मैं बड़ा सुखी हूं, मेरेको ही अच्छे अच्छे पदार्थ खानेको मिलते हैं, और मैं बडा श्रीमंत था इत्यादिक रूप तीन गारवोंसे जो युक्त हैं ऐसे जीव ऊपर कहे हुए बाल मरणसे मरते हैं. इन बालमरणोंसे बहुत तीव्र पाप कर्मके आस्रव जीवमें आते हैं, ये बालमरण जरा, मरण वगैरह संकटोंमें जीवाको फेकते हैं.
पंडित मरणका कथन करते है
१व्यवहार पंडित २ सम्यक्त्व पंडित ३ सम्यग्ज्ञान पंडित ४ चारित्र पंडित एसे पंदितके चार भेद है. लोक, येद, समय इनके व्यवहारों में जो निपुण हैं वे व्यवहार पंदित हैं. अथवा जो अनेक शाखोंके जानकार हैं, शुश्रूषा, श्रवण, धारणादि बुद्धिके गुणोंसे जो युक्त हैं उनको व्यवहार पंडित कहते हैं.
दर्शन पंडित-जिनको क्षायिक सम्यग्दर्शन, अथचा औपशमिक सम्यग्दर्शन या क्षायोपशामिक सम्यग्द- र्शन हैं वे जीव दर्शन पंडित हैं।
झामपंडित-मल्यादि पाच प्रकारक सम्यग्नानसे जो परिणत है उनको ज्ञानपडित कहते हैं।
चारित्र पंडित–सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसापराय, यथाख्यात ऐसे चारित्रके पनि भेद है, उनमेंसे किसी एक चारित्रके धारक जो है उनको चारित्रपंडित कहते हैं. यहां ज्ञानपंडित और चारित्र पंडितोंका ही ग्रहण करना चाहिये क्योंकि व्यवहारपडित मिथ्यादृष्टि होता है इसलिये उसका मरण बालमरणमें समाविष्ट होता है. और ज्ञानादिपडितोंका मरण पंडितमराममें अन्तर्भूत होता है ऐसा समझना चाहिये. नरकमें, भवनवासिदेवोंके स्थानों में, स्वर्गवासिदेवोंके तथा ज्योतिर्वासिदेबाक विमानों में व्यंतरोंके निवास स्थानोम, द्वीप और समुद्रों में दर्शनपंडितका मरण होता है.
ज्ञानपंडितोंका मरण भी उपर्युक्त स्थानों में होता है परंतु जिनको मनःपर्यय प्राप्त हुआ है ऐसे ज्ञानपंडित और जिनको केवलज्ञान हुआ है ऐसे ज्ञानपंडित इनका मनुष्य लोकमें ही मरण होता है।
अवसनमरणका वर्णन-रत्ननथमार्गमें विहार करनेवाले मुनिओंका संघ जिसने छोड दिया है एसे सुन्निको
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