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मूलारापना
आधासः
ऐसे मरणका उत्तर मरणमें नाश होना उसको आद्यतमरण कहते हैं. प्रकृति, स्थिति, अनुभव और प्रदेशांसे युक्त ऐसे आयुका नाश होनेसे वर्तमानकालमें जैसा मरण प्राप्त हुआ है ऐसा ही सदृश मरण आगे जीवको यदि प्राप्त न होगा तो उसको आधतमरण कहते हैं।
. ५ वालमरणका स्वरूप-बालका-अर्थात् अज्ञानी जीचका जो मरण उसको बालमरण कहते हैं. पालजीवके पांच भेद हैं. उनके नाम यथा-अन्यक्तयाल, व्यवहारबाल, ज्ञानबाल, दर्शनबाल और चारित्रवाल,
अव्यक्तबाल-अव्यक्त शब्दका अर्थ छोटा लडका ऐसा होता है. अर्थात जो धर्म, अर्थ, काम और मो. क्षका स्वरूप जानता नहीं और इन चार पुरुषार्थोंका आचरण करनेमें जिसका शरीर असमर्थ है ऐसे बालकको
व्यवहार चाल-लोकव्यवहार, वेदका ज्ञान, शास्त्रज्ञान, जिसको नहीं है वह व्यवहार बाल है. दर्शन चाल-तत्वार्थ श्रद्धान जिनको बिलकुल नहीं हैं ऐसे मिथ्यादृष्टि जीव दर्शन चाल है. ज्ञान बाल-जीवादि पदार्थोंका यथार्थ शान जिनको नहीं है वे ज्ञान बाल है.
चारित्र बाल--चारित्रहीन प्राणीको चारित्र बाल कहते हैं. ऐसे पांच बालोंका जो मरण उसको बाल मरण कहते हैं. ऐसे बाल मरण अनंतवार भूतकालमें इस जीवने प्राप्त किये हैं. अनंत जीव इस मरणको प्राप्त होते हैं. यहां दर्शनबालका प्रकरण ही प्रस्तुत है. इतर बालोंका विवेचन करनेकी यहां आवश्यकता नहीं है, सम्यग्दृष्टीमें इतर बालकत्वका सद्भाव है तो भी सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होनेसे वह दर्शनपंडित कहा जाता है. अतः सम्यग्दर्शन सहित उसका मरण होनेसे उसके मरणको पंडित मरण ही कहते हैं.
दर्शनवालके मरणके संक्षेपसे दो भेद है. इच्छाप्रवृत्त और अनिच्छाप्रवृत्त.
इच्छाप्रवृत्त मरण--अग्नीसे, धूमसे, शस्त्र के द्वारा, विषसे, पानीसे, पर्वतपरसे कूदनेसे, श्वासोच्छ्रास रोकनेसे, अति शीतोष्णके पहनेसे भूक और प्याससे, जिव्हाको उखाइनेसे, प्रकृति के विरुद्ध ऐसे आहारका सेवन करनेसे, इत्यादि कारणासें जीवनका त्याग करनेकी इच्छासें जो प्राण त्याग करते हैं वे इच्छाप्रवृत्त भरण करनेवाले दर्शन बाल है. योग्य कालमें अथया अकालमें ही मरनेका अभिप्राय धारण न करते हुए भी दर्शन पालाको जो मरण आता है वह अनिच्छाप्रवृत्त मरण है. जीनकी इच्छा होते हुए भी जो मरण आता है वह