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भिभिराम को नींद सताने लगी थी। मधु को बिछोने की व्यवस्था करने के लिए कहकर वह अलाव के पास चिलम सुलगाने लगा। वहीं से उसने देखा कि जयराम मेधि और आहिना कोंवर भी खाना खाकर उठे और चले गये। थोड़ी देर बाद मधु और धनपुर भी चले जायेंगे । गोसाईंजी से अन्दर बातें करके दधि बदल भी अभी-अभी चले गये ।
थोड़ी देर बाद मधु ने लाकर एक चटाई बिछा दी। थोड़ा पुआल उस पर डाला और खद्दर की चादर ऊपर बिछा दी । सिरहाने एक फूलदार तकिया भी रखा गया और अन्त में एक कम्बल भी । यह सब करके धनपुर को साथ लिये हुए मधु वहाँ से चला गया ।
कुछ ही मिनिट गये होंगे कि गोसाईजी बाहर आ गये और भिभिराम के पास आ बैठे । उसकी आंखें झपकती देखकर वे बोले :
"अच्छा, तुम्हें नींद नहीं लगी है। देर तक नहीं रोकूंगा ।"
भिभिराम ने चिलम एक तरफ़ रख दी और सिर को एक झटका-सा देते हुए कहा :
"नहीं-नहीं; नींद की सोचने से नहीं चलेगा। हाथ में जो काम है वह जितना ज़रूरी है उतना ही ख़तरे का । आपने उस स्थान को स्वयं देखा है न ?” "स्वयं तो नहीं देखा, मगर कामपुर के गोसाईंजी ने पूरा विवरण वहाँ का दिया है।"
"मुझे भी बताया था उन्होंने दो पहाड़ों के बीच एक सँकरा स्थान । उनके अनुसार रेलगाड़ी को यदि पटरी से वहीं गिराया जाय तो डब्बे इधर-उधर लुढ़ककर खड्ड में जा रहेंगे और तब कई दिनों तक मिलिटरी को रसद-पानी तक के लिए हाथ मलते रह जाना पड़ेगा ।"
गोसाईजी की मुखमुद्रा गम्भीर हो आयी । गाल पर हाथ रखते हुए बोले : "हाँ, विवरण से स्थान तो यही लगता : लेकिन - "
" भिभिराम की प्रश्न- भरी दृष्टि एकदम से उनकी ओर उठी ।
गोसाईं ने एक-एक शब्द को तोलते हुए कहा :
भिभिराम, सुशिक्षित सैनिकों से भूल हो जाती है। हम साधारण जनों से तो और भी हो सकती है । मैं इसलिए सोच-विचारकर यथासंभव सही ढंग से काम करने के पक्ष में हूँ । क्यों न कल को हम लोग यहाँ से तीन दलों में बँटकर कमारकुची आश्रम तक जायें और आवश्यक लगने पर उस स्थान के बारे में फिर विचार कर लें ? काम के आदमियों का बहुत अभाव है । तुम्हारा यह धनपुर जरूर एक योग्य व्यक्ति लगता है । देखते हो न, उसमें न दुराव-छिपाव है न चापलूसी । अच्छा, फिश प्लेट यह खोल तो सकेगा न ?”
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भिभिराम हँस दिया ।
38 / मृत्युंजय