Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 270
________________ ___ "सुनिये, आजकल समय ठीक नहीं है । सदर थाने में सुनने को मिला कि आजकल आपके यहाँ वॉलण्टियरों का अड्डा है।" "अगर है भी तो इसमें आपको क्या परेशानी है ?" शइकीया ने धीमे स्वर में कहा, "इन्हीं लोगों ने आपके पति और मेरे मित्र की हत्या की है। एक असमी और अभी-अभी गिरफ्तार हुआ है। और बाक़ी लोगों के भी मैं पीछे पड़ा हूँ।" अनुपमा को लगा जैसे उसके हृदय को बेधता हुआ एक तीर पार हो गया हो। वह सोचने लगी-क्या अभी-अभी जो आदमी यहां से गया था, वह भी उन्हीं हत्यारों में से एक है ? वह इस बार शइकीया के सामने आकर बैठ गयी और बोली : ___"ठीक ही हुआ। अब जल्दी ही इन सबको सज़ा हो, तो मेरे प्राणों को भी शान्ति मिले।" लेकिन शइकीया की त्यौरी अभी भी चढ़ी हुई थी। कुछ डपटकर बोला : “सदर थाने में ही सुना कि रूपनारायण को आप ही ने छिपाकर भगाया है। अभी-अभी जिस व्यक्ति को पकड़ा है वह भी आपके ही घर से गया था।" डिमि का उल्लेख न होने से अनुपमा ने अनुमान लगा लिया कि वह नहीं पकड़ी गयी। उसने दारोगा से कहा : "देखिये, इस सम्बन्ध में मैं आपसे कुछ भी कहना-सुनना नहीं चाहूंगी।" "क्यों ? यह तो आपके हित में न होगा। हम आपके लिए उनकी पेंशन दिलाने की कोशिश में हैं, और आप'"सुन लीजिये ! आपकी ननद यहाँ जब तक रहेंगी, ये लोग यहाँ आते ही रहेंगे। अच्छा तो यही है कि आप उन्हें यहाँ से जल्दी दफ़ा कीजिये।" "वह तो जाने के लिए ही तैयार बैठी हैं । मैं ही कुछ सोच नहीं पा रही हूँ।" 'क्यों?" "वह जैसी भी हैं, आखिर हैं तो ननद ही न !" अनुपमा ने उत्तर दिया। "फिर उन्हें..." "कोई सहारा चाहिए, यही न?" "हाँ।" शइकीया हँसने लगा । अपनी हथेली पर रूल नचाते हुए उसने कहा : "इन लोगों के आन्दोलन की कमर मैं पहले ही तोड़ चुका हूँ। रूपनारायण के पैर में गोली लगी है, कहीं पर भी न काटना पड़े। अभी कुछ कहा नहीं जा सकता," कहते हुए उसने गुप्तचर की नाई अनुपमा के चेहरे पर नज़र टिका दी और उसके एक-एक भाव को पढ़ने लगा। थोड़ी देर बाद उसने पूछा : "आप उसे जानती हैं ?" 266 / मृत्युंजय

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