Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 277
________________ दुहराया है। वे जेल से छूटते ही अधूरे काम को पूरा करने के लिए एक बार फिर जुट जायेंगे। रूपनारायण तो अस्पताल में पड़ा होने पर भी हुंकार रहा है / आज तो सारे संसार की पददलित जातियां मुक्ति के लिए संग्राम कर रही है, फिर ये लोग क्यों नहीं करेंगे? ये वैसे ही क्यों रहेंगे? कभी नहीं रह सकते।" जेल के बाहर आज भी बड़ी भीड़ थी। वॉलण्टियर लगातार पकड़-पकड़कर लाये जा रहे थे / और पुलिस--"वह भी थककर चूर हो चुकी है।" / अनुपमा मौन हो गयी। गोसाइन उसकी बातें सुनकर किसी और चिन्ता में खो गयी थीं। वह सोच रही थीं : स्वाधीनता पा जाने के बाद यह देश कैसा होगा ! लोग अच्छे बनेंगे या बुरे ? अब तक यह रक्तपात, तोड़-फोड़, आगजनी, हिंसा की यह प्रवृत्ति कहाँ छूट सकी है? बहुत देर तक मौन रहने के बाद अनुपमा ने पूछा : "क्या सोच रही हो? बताओ न।" और गोसाइन बस इतना ही बोली : "स्वाधीनता पा लेने के बाद लोग अच्छे बनेंगे या नहीं?"

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