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धनपुर पर भी आ पड़ी । सारी देह एकबारगी उस रोशनी में झलमला उठी । तभी वह देख पाया कि हाथ से वह जिस पेड़ की डाली थामे हुए था, वह बेर का एक पेड़ था। आस-पास और भी कई पेड़ थे। हरी-भरी पत्तियों पर उजली रोशनी के फैलने से वह बीहड़ भी मनोरम हो उठा । धनपुर को इनके आने का कोई भय नहीं था। उसकी बस यह ही चाह थी। काश ! डिमि को वह एक बार चूम पाता। उसे चूम लेने के लिए उसकी रगों में अब भी जोश शेष था। डिमि आ जाती तो उसकी यह साध पूरी हो जाती। उसे बड़ी शान्ति मिली होती।
-टॉर्च की रोशनी धीरे-धीरे उसके गिर्द घूमने लगी : शायद उन लोगों ने रास्ते का सही अनुमान लगा लिया। उधर से आनेवाली जंगली पगडण्डी को खोज निकालने में उन्हें अब अधिक समय नहीं लगेगा। बलबहादुर उन्हें ज्यादा से-ज्यादा दस-पन्द्रह मिनट तक ही इधर-उधर भटका सकता है । अन्त में वे उस पगडण्डी से इधर ही बढ़ आयेंगे । बलबहादुर को वे सब शायद नाव खेने के लिए ही लिवा लाये होंगे। उनके साथ ज़रूर कोई-न-कोई इधर का रास्ता जाननेवाला भी होगा। वह गारोगाँव का न हो ! हो सकता है, उसके साथ ही लयराम आया हो। ___ लयराम का ध्यान आते ही धनपुर के भीतर एक बार फिर क्रोध की आग भड़क उठी।
थोड़ी देर बाद उसे पुलिस पकड़ लेगी। बड़ी कठिनाई से उसने तुरन्त अपनी जेब टटोली । सौभाग्य से उसकी जेब में कुछ नहीं था। उसे सन्तोष हुआ कि वे अधिक-से-अधिक इस देह को पा सकेंगे। उसका ध्यान अपने गारो कुर्ते पर भी गया । पर वह तो पहले चिथड़े-चिथड़े हो चुका था। उसने सोचा : नहीं, इससे उनका कुछ नहीं बननेवाला।
छाती की धड़कन लगातार तेज होती ही जा रही थी। धीरे-धीरे डग भरने की आवाज़ मिली।
थोड़ी देर में ही वे यहाँ आ धमकेंगे। इस समय एक बन्दूक होनी चाहिए थी। पर न होना ही ठीक है । एक बन्दूक से मैं भला क्या कर लेता ! ये वन्दूक भी लेकर चले जाते । अच्छा हुआ कि मैंने अपनी बन्दूक़ उन सबके हाथों भिजवा दी थी। वह किसी अच्छे काम में आयेगी। हाँ, उन्हें केवल गिरफ्तार होने से बचे रहना चाहिए। . यह देह-अब इसमें रह ही क्या गया है !उसने निश्चिन्त होकर आँखें बन्द कर लीं । चिन्ता करने से कोई लाभ भी तो नहीं। गारोगाँव में शोर-गुल बढ़ता ही जा रहा है । गाँववाले शायद अपने बचाव के लिए इधर-उधर भाग-दौड़ रहे हैं । शायद उनकी धर-पकड़ करने के लिए मिलिटरी पुलिस ने वहाँ घर-तलाशी की है। करती रहे तलाशी। अब मिलेगा कौन ? किन्तु ये लोग निर्दोष हैं।
192 / मृत्युंजय