Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 260
________________ पीढ़ियों तक और इस ड्योढ़ी में रहेंगे। इस समय चौथी पीढ़ी चल रही है। यह सोचते ही गोसाइन एक बार फिर दहल उठीं। क्या वह इस घर को छोड़कर चले जायेंगे? पता नहीं, उनकी कैसी कृपा रहती है ? __ तभी बाहर किसी महिला की आवाज़ सुन गोसाइन जी खड़ी हो गयीं। बाहर जाने पर देखा कि वहाँ एक मिकिर महिला खड़ी है। वह मुस्करा रही थी। गोसाइन ने कहा : "लगता है, मैंने तुम्हें कभी देखा है ?" "हाँ, पहचानेंगी कैसे नहीं । मैं डिमि हूँ।" गोसाइन को स्मरण हो आया। उस दिन भी वह आयी थी, पर शीघ्र ही लौट गयी थी। "आओ, अन्दर ही चली आओ," कहते हुए उन्होंने उसे अन्दर बुला लिया। डिमि घर के अन्दर आ गयी। गोसाइन ने उसे बैठने के लिए एक पीढ़ा दिया। और पूछा : "सुना, था, तुम्हें जेल हो गयी थी?" "हाँ, वहीं से छूटकर आ रही हूँ। आज परेड थी। हो गयी।" "हो गयी ? तुझे भी लोगों को पहचानने के लिए कहा था क्या ?" "हाँ। पर मैंने किसी की शिनाख्त नहीं की। सबको ही तो जानती हूँराजा, जयराम, आधोना-सबको। पर मैंने साफ़-साफ़ बता दिया कि मैं किसी को भी नहीं पहचानती।" वह थोड़ी देर कुछ सोचती रही फिर एकाएक उसने पूछा : "ये वकील साहब हैं कि नहीं ?" "यहाँ कहाँ ? उन्हें भी तो जेल हो गयी।" गोसाइनजी ने सारी घटना कह सुनायी। सुनकर डिमि मुसकरायी और बोली: "तो रूपनारायण तो बच गया न?' "नहीं, शइकीया दारोगा उसके पीछे पड़ा हुआ है। कहीं वह भी गिरफ्तार न कर लिया जाये ?" डिमि का चेहरा लटक गया। "भला तब क्या होगा? उधर मायऊ में लय राम का उत्पात बढ़ता ही जा रहा है। सुना है, उसे हमारे गाँव के लोगों ने बाँध रखा था।" गोसाइन ने दोनों हाथों से अपना मुंह ढक लिया। बोली : "वह सब मुझसे मत कह । मुझसे सहा नहीं जाता। हाँ, तू वकील साहब को क्यों खोज रही थी ?" "भुइयाँ साहब ने उनसे मिलने को कहा था। पैरवी करने के लिए शायद 256 / मृत्युंजय

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